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जैन जातिमहोदय प्रकरण छट्ठा.
सदाचार में परावर्तन हुवा उसी रोज से क्षत्रियोंने जैनधर्म से किनारा ले लिया अर्थात् नये जैन होना बन्ध हो गये और दूसरा यह भी कारण है कि अन्य धर्म में खाना पीना रहन सेहन भोगविलास की स्वच्छंदता है अर्थात् सब तरह की छुट है और जैन धर्म का मुख्य सिद्धान्त वैराग्यभाव पर निर्भर है यहा इन्द्रियों के गुलाम नहीं बनना है पर इन्द्रियों कों दमन करना पडता है विषयभोग विलास से विरक्त रहना पडता है इर्षा द्वेष अभिमान क्रोध लोभादि श्रान्तरिक वैरियो पर विजय करना है संसार से सदैव निवृति अर्थात् संसार में रहते हुवे भी जल कमल कि माफीक निर्लप रहना पडता है इत्यादि जैन धर्म का कष्टमय जीवन संसार लुब्ध जीवों से पालन होना मुश्किल ही नहीं पर दुःसाद्य है इसी कारण से क्षत्रिय लोगोने जैन धर्म से किनारा लिया है न कि जैन धर्म का तत्वज्ञान को समझ के । जैन धर्म का सिद्धान्त इतना तो उच्च कोटि का है कि जिसको अवलोकन - अध्ययन करनेवाले असंख्य पूर्विय और पश्चत्य विद्वान मुक्त कण्ठ से जैन धर्म के सिद्धान्तो की प्रशंसा कर रहे है ।
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इतना होने पर भी हमारे जैनाचार्य जैन धर्म का तत्वज्ञान सममाने के लिये आज भी मैदान में कुद पडे तो पूर्ण विश्वास है कि वह जैन धर्म का खूब प्रचार कर सके जैसे कि पूर्वाचार्योंने किया था कारण आज गुण गृहाही और तत्व निर्णय युग में सत्य को ग्रहन करनेवालों कि संख्या दिन ब दिन बढती जा रही है । पर हमारा दुर्भाग्य है कि आज हमारे आचार्यो को व मुनि पुवों