________________
( ३२ ) जैन जाति महोदय प्रकरण छट्ठा. आत्मशक्तियों का विकाश होना ही वीरता है और इस के लिये जैन जातियों का सदैव प्रयत्न होता रहता है फिर जैन जातियों को कायर कमजोर बतलाना यह अज्ञान नहीं तो और क्या है ?
जैन धर्म के सब तीर्थंकर पवित्र क्षत्रिय जैसे विशुद्ध वीरवंश में अवतार धारण किया और उन्होंने दुनियों की कायरता
और कमजोरियों को समूल नष्ट करने को वीरता का ही उपदेश दिया इतना ही नहीं बल्कि उन्होंने वीरता में ही मोक्ष बतलाया था. तदानुसार उन की परम्परा संतान में अनेक आचार्य हुए उन सबने विक्रम की सोलहवीं शताब्दी तक तो एक ही धारावाही वीरता का ही उपदेश दिया तत्पश्चात् कलिकाल कि क्रुरता से केइ मतमतान्तरों का प्रादुर्भाव हवा और कितनेक अनभिज्ञ लोग जैन धर्म के अहिंसा तत्वकी विशालता को पूर्णतया नहीं समझ के बिचारे भद्रिक लोगों को केवल दयापालो दयापालो का उपदेश दे उन वीर जातियों के हृदय से वीरता निकाल ऐसा तो संस्कार डाल दिया कि वह लोग अपने तन धन और धर्म के रक्षणार्थ अस्त्र शस्त्र रखते थे और काम पडने पर दुश्मनों का दमन करते थे वह विष्वा के चुडियों कि भांति तोड फोड के फेक दिये । और अपने प्राचार व्यवहार में भी इतना परावर्तन करदिया जिन से दुनियों को यह कहने का अवकाश मिल गया कि जैन जातियों कायर कमजोर और उन का आचार व्यवहार अनेक दोषो से दोषित है अर्थात् गन्धीला है इस अनुचित दया का यह फल हुवा कि उस समय से नया जैन बनना बिलकुल ही