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________________ जैन समाजकी वर्तमान दशापर प्रश्नोत्तर. ( ३१ ) नहीं मिलते, जैन जातियों मे क्या तो राजकर्मचारी क्या व्यापारी सभी वीरता धैर्यता सत्याता और शौर्यता कि कसोटी पर कसे हुवे थे उनके हाथ नपुंसको कि भ्रांति अस्त्र शस्त्र विहिन कभी भी नहीं रहते थे वह अपने तन धन जन और धर्म का रक्षण स्वयं ही आत्मशक्ति और भूजबल से ही किया करते थे न की दूसरो की अपेक्षा रखते थे फिर समझ मे नहीं आता है कि जैन जातियों को कायर कमजोर बतला कर हमारे परम पूजनिय पूर्वाचार्यों का अनादार क्यों किया जाता है ? 1 जैन धर्म का हिंसा तत्व जितना उच्च कोटिका है उतना ही यह विशाल है पर उन को समझने के लिये इतनी बुद्धि होना परमावश्यक है । जैन मुनियों के लिये सर्व चराचर प्राणियोंकी रक्षा करना उन का हिंसात्रत है तब गृहस्थों के लिये अहिंसावत की मर्यादा रखी गई है अर्थात् वह किसी निरापराधि जीवों को तकलीफ न पहुँचावे पर अन्यायि दुराचारी और अपराधि को दंड देना व संग्राम में उनका सामना करना और प्राणदंड देना गृहस्थों के अहिंसा का बाधक नहीं समझा गया है कारण अनेक राजा महाराजा जैन धर्म का अहिंसात पालन करते हुए भी रणभूमि में अनेक अपराधियों को प्राणदंड दिया है जिन से उन के हिंसा व्रत को किसी प्रकार कि बाधा नहीं पहुँची थी अतएव जैन जातियों कायर कमजोर नहीं प्रत्युत शूरवीर है जैन धर्म का खास सिद्धान्त पुरुषार्थ प्रधान है आत्मशक्तियों को विकाश में लाने के लिये क्रियाकाण्ड उन के साधन है
SR No.002448
Book TitleJain Jati mahoday
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyansundar Maharaj
PublisherChandraprabh Jain Shwetambar Mandir
Publication Year1995
Total Pages1026
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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