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________________ ( ३० ) जैन जाति महोदय प्रकरण छट्ठा. खर्च कर धर्म के स्थंभरूप दिव्य जिनालयो की प्रतिष्ठा करवाई जिस से धर्म सेवा के साथ उन्होंने भारत की सील्पकला को भी जावित प्रधान करने का शोभाग्य प्राप्त किया । जैसे उन को धर्म सेवा से प्रेम था वैसे ही वह देश और देश भाई की सेवा करना अपना परम कर्त्तव्य समझते थे और इसी कर्त्तव्यपरायणता का परिचय देते हुवे असंख्य द्रव्य व्यय कर हीन, दीन दुःखियों का दुःख निवारणार्थ अनेक कुँबे तलाव वावडियों मुसाफरखाने दान - शालाओ औषधशालाओ पाणीकी पौ और बडे बडे काल दुष्कालो में अन्न पीडित देशभाइओं को अन्न प्रदान कर उन का आशीर्वाद संपादन किया था इतना ही नहीं पर मुशलमानो के जुल्मी राज में कर टेक्स के लिये साधारण जनता को अनेक वार बन्धवान कर लेते थे उस विकटावस्था में भी जैनोंने असंख्य द्रव्य से उन देशभाईयों को प्राणदान देकर अपना कर्त्तव्य अदा किया. जिस दानेश्वरो मे जगडुशाहा जावडशाहा देशलशाहा गोशलशाहा सम शाहा श्यामाशाहा भैशाशाहा भैरूशाहा रामाशाहा सांढशाहा खेमादेदांणी सांरंगशाहा ठाकरशी नरनारायण विमलाशाहा और वस्तुपाल तेजपाल विशेष प्रसिद्ध है उन दानेश्वरो के मधुर यशोगान आज भी कर्णगोचर हो रहा है अगर जैन जातियो कायर कमजोर होती तो यह शोभाग्य प्राप्त कर सक्ती ? अगर जैन जातियों कायर कमजोर होती तो विक्रम पूर्व ४०० वर्ष से विक्रम की सोलहवी शताब्दी तक क्षत्रियादि वीरपुरुष जैन धर्म को ग्रहन कर ओसवाल ज्ञाति में कदापि सामिल
SR No.002448
Book TitleJain Jati mahoday
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyansundar Maharaj
PublisherChandraprabh Jain Shwetambar Mandir
Publication Year1995
Total Pages1026
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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