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जैन समाजकी वर्तमान दशापर प्रश्नोत्तर.
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युक्ति न होगा कि उस समय भारत का व्यापार प्रायः जैन जातियों के ही हस्तगत माना जाता था. व्यापार के जरिये उन लोगोंने अपनी व देश की खुब उन्नति करली थी. बात भी ठीक है कि व्यापार एक देशोन्नति का मुख्य कारण है जिस देश मै व्यापार की उन्नति है वह देश धन धान्यादि से सदैव हरावरा रहता है भारत सदैव से व्यापार प्रधान देश है फिर भी जैनो की व्यापार कुशलता सत्यता और प्रमाणिकताने तो उस मे केइ गुणावृद्धि
sa हीनहीं पर जैन जातियोंने व्यापार द्वारा भारत में लक्ष्मी की इतनी तो रेलछेल कर दी और अन्योन्य देशों की लक्ष्मी भी भारत पर मोहित हो अपनी वरमाला भारत के कण्ठ में पहरा के-भारत को ही अपना निवास स्थान बना लिया, जैन जातियोंने जैसे राजतंत्र चला के देश सेवा कर सौभाग्य प्राप्त किया था वैसे ही वैपार की उन्नति कर देश सेवा का यश प्राप्त करने में भाग्यशाली बनी थी ।
जैन जातियोंने व्यापार में असंख्य द्रव्योपार्जन कर केवल मोजमजा मे ही नहीं उडा दिया था. साथमे लक्ष्मी की चञ्चलता भी उन से छपी हुई नहीं थी. न्यायोपार्जित द्रव्य को स्वपर कल्याण कार्यों में व्यय करने की भावना उन लोगों की सदैव रहा करती थी यही तो उन दूरदर्शि महाजनो की महाजनता और बुद्धिमन्ता है । और उन लोगोने किया भी ऐसा कि शत्रुंजय, गिरनार आबु तारंगा कुलपाक अंतरीक्ष मक्सी कुम्बरिया और राणकपुरादि पवित्र स्थानोंपर लाखो क्रोडो अब और खर्बो रूपये
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