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( २८) जैन जाति महोदय प्रकरण कट्टा. महाराजा संप्रति, महामेघवाहन चक्रवृति, महाराजा खारवेल, . धूवसेन, सल्यादित्य, वनराज चावडा, महाराजा आम, अमोघवर्ष, धर्मपाल, देवसेन और कुमारपालादि सेंकडो राजाओने अपने जैन धर्म का बडी योग्यता से रक्षण पोषण कर उन को उन्नत बनाया था और आज जो जैन जातियों जैन धर्म पालन कर रही है वह भी प्रायः सब क्षत्रिय वंश मे ही पैदा हुई है और इन जातियों के पूर्वजोने भारत का राजतंत्र बडी कुशलता से चलाकर राजपूत्त होने का परिचय भी दिया था ।
भारत का राजतंत्र जहाँतक जैन जातियों के हस्तगत रहा था यहाँतक भारत के चारो और शान्ति का साम्राज्य वरत रहा था और लक्ष्मीदेवी की पूर्ण कृपा से देश में दालिद्रता का नाम निशांन तक भी नहीं था अर्थात् देश तन धन से बडा सम्रद्धिशाली था यह सब जैनों की कार्यकुशलता सिन्धीकुशलता और रणकुशलता का उज्ज्वल दृष्टान्त है तत्पश्चात् जैसे जैसे जैन जातियों से राजतंत्र छीना गया वैसे वैसे देश में अशान्ति फैलती गई क्रमशः आज भारत विदेशियों की वेडीयों में जकडा हुवा पराधिनता का दम ले रहा है साथ में दालिद्रताने अपना पग पेसारा करना सरू कर दिया।
जैन जातियों ज्या ज्यां राज कार्यों से पृथक होती गई त्यां त्यो उन लोगोंने व्यापार क्षेत्र में अपने पैर बढाते गये। जल थल रास्ते देशविदेश मे खुब व्यापार कर उन लोगोने लाखो क्रोबो नहीं पर अर्को खो रूपैये पैदा किये । यह कहना भी अतिशय