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( २६ ) जैन जातिमहोदय प्रकरण छळा.
और वच्छराजजी मारवाडका इतिहासमे बडे ही मशहुर है. क्या . जैन जातिये कायर थी ?
(५) मुनोयत-जोधपुर के महाराजा रायमलजीके संतान मोहनजीने विक्रम की चौदहवी शताब्दीमें जैन धर्म स्वीकार किया जबसे उनकी संतान मुनोयत जाति के नामसे मशहुर हुई-इस जातिकि वीरता कुच्छ अलौकिक ही है जैसलमेर कीसनगढ ओर जोधपुरके मुनोयतोंकी वीरताका वीर चारित्र सुनतेही कायरो के निर्बल हृदयं में शौर्य का संचार हुवे विगर कभी नहीं रहता है इस जातिकी धीरताके लिये एक उदाहरण भी काफी होगा जो कि मुनोयत वीर नैणसी और सुन्दरदाम यह दोनो वीर जोधपुर राजाके दीवान
और फोजमुशफ थे जब दरवारने औरंगाबाद पर चडाई कीथी उस समय दोनो वीर साथमे थे और युद्धक्षेत्रमे अपनी वीरता का पूर्ण परिचय भी दीया थाः पर कितनेक लोग द्वेष ईर्षाके मारे दरबारको कुच्छ और ही सोचादि कि दरबार उन दोनो वीरो से नाराज हो उन पर एक लक्ष मुद्रिकाए का दंड कर दिया इसपर वह निर्दोष वीर युगल निडरतासे कह दिया कि
लाख लखारो संपजे । अरु वड पीपल की साख.
नटिया मुत्ता नैणसी। तांबो देण तल्लाक ॥ १ ॥ लेसो पीपल लाख । लाख लखारा लावसी,
तांबो देण तलाक । नटिया सुन्दर नैणसी ॥२॥ इन वीर वाक्योपर मुग्ध हो दरबारने उनको दंडसे मुक्त