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________________ जैन समाजकी वर्तमान दशापर प्रश्नोत्तर. ( २५ ) नरसिंह और लुगाशाह विगेरे बडे ही नामी हुए और जिनकी संतान आज लुणावत के नामसे मशहुर है । ( ३ ) वि० सं० १०३६ नाडोलाधिप राव लाखाजी के लघु बन्धव राव दुद्धाजी को आचार्य यशोभद्रसूरिने प्रतिबोध दे जैन बनाया. बाद माता आसापुरीका काम करने से उनकी जाति भण्डारि हुई उनके १४ पीढी तक तो बेटी व्यवहार राजपूतों के साथ ही रहा था, जिन भण्डारि जाति कि वीरता के लिये यहाँ पर विशेष लिखने की आवश्यक्ता और अवकाश नहीं है. कारण इनकी वीरता जगत्प्रसिद्ध है तथापि एक उदाहरण यहाँपर लिख देना अनुचित न होगा। जो कि महाराजा अजीतसिंहजीके राजत्वकाल में अहमदावाद मुसलमानांकि दांडोंमे चला गया था. इस पर ७०० घुडसवारों के माथ भण्डारी रत्नसिंहजी को अहमदाबाद विजय करने को भेजे । भण्डारीजीने वहाँ जाकर अपनी कार्यकुशलता युद्धचातुर्यता और भूजबलसे युद्धक्षेत्र में मुगलोंके ऐसे तो दान्त खट्टे कर दिये कि उनको रणभूमिसे प्रारण लेकर भागना पडा और भण्डारीजीने अहमदाबाद स्वाधीन कर जोधपुर नरेश का विजयडंका बजवा दिया। क्या जैन जातियों कायर - कमजोर थी ? ( ४ ) जैसे भण्डारियोंकी वीरता अलौकीक थी वैसे सिंधियोंकी वीरता से दिल्लिकी बादशाहायत भी कम्प उठती थी. सोजत और जोधपुरके सिंधियो की वीरताको लिखी जाय तो एक स्वतंत्र ग्रन्थ बन जाय. हालही मे सिंधीजी इन्द्राराजजी फतेराजजी
SR No.002448
Book TitleJain Jati mahoday
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyansundar Maharaj
PublisherChandraprabh Jain Shwetambar Mandir
Publication Year1995
Total Pages1026
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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