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________________ । १८ ) जैन जाति महोदय प्रकरण छला. स्थापना कर उन पर विधि विधान के साथ ऐसा प्रभावशाली वासक्षेप डाला कि वह सदाचार के जरिये स्वर्ग और मोक्ष के अधिकार बन गये, जिस के फल स्वरूप आज पर्यन्त उनकी परम्परा सन्तान आचार्यश्री दर्शित शुद्ध मार्ग का ठीक अनुकरण कर रही है। इतना ही नहीं पर उन महाजन संघ के नररत्नवीरोंने देश, समाज, और धर्मकी अत्युत्तम सेवाएं कर अपने नाम से इतिहास पट्ट अलंकृत किया, जिस के यशोगान के मधुर स्वर आज भी प्रतिध्वनित हो रहे हैं । इतना ही नहीं पर महाजन संघ की देश सेवा को आज अच्छे अच्छे विद्वान, अर्थात् ऐतिहासज्ञ सज्जन मुक्तकण्ठ से प्रशंसा करते हैं और महाजन संघ की देश सेवा का जो प्रभाव जन समूह पर पडा है, वह सब प्राचार्यश्री का अनुग्रह-कृया का ही मधुर फल है। महाजन संघ के नररत्न दानेश्वरों के वनाए हुए हजारों आलीशान मंदिर, लाखों मूर्तियों, अनेक कुए, तलाव, वावडियों मुसाफिर खाने, और दुष्कालादि विकटावस्था में क्रोडों द्रव्य व्यय कर अन्न पीडित देश भाइयों के प्राण बचाए. इत्यादि यह सब प्रत्यक्ष प्रमाण किसी से छिपा नहीं है। क्या यह प्राचार्यश्री की पूर्ण कृपा का उत्तम फल नहीं है ? यदि आचार्यश्रीने वह उपकार नहीं किया होता तो क्या वह दुराचार सेवित वर्ग जैन धर्म स्वीकार कर पूर्वोक्त सद्कार्य कर अनन्त पून्योपार्जन से स्वर्ग मोक्ष के अधिकारी बन सकते ! इतना ही नहीं पर उन मिथ्यात्व सेवित महानुभावों तथा उन की परम्परा सन्तान की न जाने क्या गती ( दशा ) होती ?
SR No.002448
Book TitleJain Jati mahoday
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyansundar Maharaj
PublisherChandraprabh Jain Shwetambar Mandir
Publication Year1995
Total Pages1026
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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