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________________ ( १६ ) जैन जाति महोदय प्रकरण बटा. की दया विभूति से जैन कहलाने का सौभाग्य प्राप्त किया है। आगे चल कर आप अपने अनौचित्य पूर्ण तथा अदूरदर्शता मिश्रित प्रश्नों का यथोचित उत्तर भी सुन लीजिये और हृदय की शंकासंतति को भी सद्ज्ञान द्वारा दूर कर दीजिये। .. प्रश्न-प्राचार्य श्री रत्नप्रभसूरि आदिने क्षत्रियोंसे जैन जातियां बनाकर बहुत ही बूरा किया, यदि ऐसा न हुवा होता. तो जैन धर्मका विश्वव्यापित्व आजकलकी जैन जाति जैसे संकुचित क्षेत्रमात्रमेंही सीमित न रहजाता। उत्तर-विदित हो कि आचार्य श्री रत्नप्रभसूरि आदिने क्षत्रिय मात्र को ही नहीं बल्कि तीनों वणोंको एकत्रित करके ही " संघ" की स्थापना की थी। उन्होने आजकलकी जैन जातयां बनाई भी न थी । किन्तु प्रभाविक, शक्तिशाली, समभावी, उंच नीचके भेद रहित उच्च आदर्शयुक्त " महाजनसंघ" के नामसे समुदायिक बलको एकत्रित किया था। वर्ण व जाति बंधनोंसे मुक्त कर उनके विभक्त शक्ति तन्तुओंको एकत्रित कर " महाजनसंघ" रूपी प्रवल रस्सामें गुन्थित कर, धर्मपतित संसारको एकात्मभाग बनाकर उन्नति के उच्च शिखर चढ़ाये थे। रत्नप्रभसूरिजीने अज्ञानान्धकाररूपी शत्रुको समूल नष्ट किया, जिनसे जैन धर्म तथा संसार का सूर्योदय हुआ । उस संघ के अन्दर भरी हुयी दिव्यशक्तिविद्युतने सज होकर स्वकीय कल्याण के साथ संसारका कल्याण किया । इतना ही नहीं, पर सर्वेत्तम जैन धर्म जो कि संकुचित क्षेत्रमात्र में ही रह गया था. उसको विश्वव्यापी बनानेका दरवाजा
SR No.002448
Book TitleJain Jati mahoday
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyansundar Maharaj
PublisherChandraprabh Jain Shwetambar Mandir
Publication Year1995
Total Pages1026
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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