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जिन जाति महोदय प्रकरण छट्ठा.
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अशान्ति आपदाएँ पलायन कर गयी; " अहिंसा परमो धर्मः " का झुंडा रोप कर भगवान् महावीरदेवने ब्राह्मणों के ब्रह्मराक्षसी अत्याचार और घोर हिंसामय यज्ञ यागादि क्रियाके विधि विधान को समूल उन्मूलित कर दिये । अपनी देशव्यापी बुलन्द आवाजसे वर्ण, जाति, उपजातिरूप बन्धनों को तोडफोड के फेंक दिये । कारागृह से छुटा हुआ कैदी जैसे स्वतंत्रता का दम लेता है, ठीक उसी प्रकार जनता भी अत्याचार अधर्म मुक्त हो प्रभु महावीरके धर्मपरायणताका झन्डाकी शरण ली | शान्तिका श्वासोच्छ्वास लिया । उंच नीचके भेद चोरों की तरह भाग गये । हृदय में समभावकी तरङ्ग उमंगे उठने लगी, “ आत्मवत् सर्व भूतेषु " का मंत्रोच्चार चारों ओर कर्णगोचर होने लगा, भ्रातृभाव और स्नेहका समुद्र उछलने लगा । लोग भूले हुए रास्ते को छोड धर्म पथपर आ गये । महावीर प्रभु के धर्मध्वज शरणागत समूहका नाम -66 श्री संघ रखा गया इस समुहकी थोडे ही समय में इतनी वृद्धि हो गयी कि लोग हजारों नहीं, लाखों नहीं, बल्कि करोडोंकी संख्या में एकत्रित
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गये । बडे २ राजा महाराजाओंने भी इसीका ही आश्रय लिया । इसका कारण यह था कि जनता ब्राह्मणोंके मनमाने असभ्य श्र त्याचारसे व्यथित हो सद्धर्म और शान्तिकी पिपासु हो रही थी यह चिरशान्ति भगवान् महावीरके श्री चरणों में मीली । यज्ञ- या - गादिकी घोर हिंसा और वर्ण जाति बन्धनको श्री महावीरने प्रथम नष्ट किया, तदनन्तर महात्मा बुद्धने भी अनुकरण किया और उन्होने भी अपने संघकी स्थापना की ।