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________________ जैन समाज की वर्तमान दशापर प्रश्नोत्तर. . ( ११ ) यज्ञ यागादिकी प्रवृत्ति शरु करा दी और उससे असंख्य अबोल प्राणीयों के बलिदानमें ही पुन्यका ठेका दे दीया । अतिरीक्त इसके केहोनें तो ऋतुदानादि में महापुन्य बतलाना शरु कर दीया | कह एक व्यभिचारीयोंने वाम मार्ग ( उलटा मार्ग ) जैसे : यभिचारी मतोंकी स्थापना कर दी। ब्राह्मण लोग अच्छी तरह समजते थे और उनको पूर्णतया शंका भी थी कि इन ग्रन्थों को सर्व लोग, सर्व कालमें स्यात् ही मानें इसलिये उन्होने उस पर छाप ठोक दी कि यह सब शास्त्र-प्रन्थ ईश्वर-प्रणीत है । इन शास्त्रों को न माननेवाला "नास्तिको वेद निन्दकः" नास्तिक होगा और उसकी स्वर्गमें गति न रहेगी अर्थात् नर्कमें जाना पडेगा । इत्यादि । ब्रामणोंका अत्याचार यहांतक बढ़ गया कि चारों ओर हाहाकार मचने लगा, अशान्तिकी भठ्ठियाँ चोतरफ धधकने लगी । भयभीत त्रासग्रस्त जनता एक ऐसे दिव्य महापुरुषकी प्रतीक्षा कर रही थी कि जिनकी कृपासे अशान्ति अन्धकारका नाश हो कर शान्ति प्रकाश हमारें मानसों को प्रकाशित कर दें। " परिवर्तनशील संसारे मृतः को वा न जायते " समय परिवर्तनशील है । रात्रिके घोर अंधकारके बाद सूर्योदय हुमा ही करता है । संसारके अज्ञान तिमिरका नाश होना ही था, अज्ञानान्धकारकी परिसीमा भी हो चुकी थी। ठीक उसी समय भगवान् महावीर देवने अपने देदीप्यमान तेजस्वी स्वरुपकी रश्मिराशिसे, दिव्य अहिंसा प्रधान शासनद्वारा अज्ञानान्धकारपटको हटा कर ज्ञानसूर्य का प्रकाश संसारके कौने २ में फैला दिया ।
SR No.002448
Book TitleJain Jati mahoday
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyansundar Maharaj
PublisherChandraprabh Jain Shwetambar Mandir
Publication Year1995
Total Pages1026
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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