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जैन समाज की वर्तमान दशा पर प्रश्नोत्तर.
( ९ )
काम पडजावें तो क्षत्रियों द्वारा करावें, न कि स्वयं स्वतंत्रता पूर्वक करने लग जाय । वर्ण व्यवस्था का उस समय एक यह भी नियम था कि नीचे वर्णवाले उपरके वर्णका कार्य न कर सकें और न उंचे वर्णवाले भी नीचें वर्णवालोंका काम करें। अगर जो कर लेवें तो शिक्षाके पात्र समजा जाता था । यदि उंचे वर्णवाला नीचे वर्णका काम करने लग जाय तो उच्च वर्णसे पतित मानकर जिस वर्णका काम कीया हो उस वर्ण में समजा जावें । कालान्तर उनकी सन्तानको भी यह ही कार्य करना पडे और उसी समुहमें उनकी गणना की जावें । इस प्रकार वर्णशृंखला और उनके नियमादि बन जानेनें चारों वर्ण अपने २ कर्ममें रत हो गये । इस सुधार-सुव्यवस्थासे जगत् में चारों ओर शान्तिदेवीका साम्राज्य स्थापित हो गया और दुष्ट अशान्ति दुम दबाकर भाग निकली। हरएक समान अपने उचित कार्यों में लगजाने से भारत के गौरवका सितारा एक वख्त फिर भी नमकने लगा ।
प्रिय पाठक ! उपर्युक्त बातोंसे आपको सम्यक्तया विदित हो गया है कि तीनों वर्ण ( क्षत्रिय, वैश्य, शूद्र ) अर्थात् सारा जगत् ही ब्राह्मणों क्रे सत्ताधिनथे, और तीनों समाज उनकी आज्ञा का पालन वडेही सत्कार और इज्जतके साथ कीया करते थे । ब्राह्मणोंने जब तक निस्वार्थ भावसे, निष्पक्षपात शासन तीनों वर्ण- संसारके उपर चलाया, तब तक शान्ति और सुखका साम्राज्य अस्खलित भावसे चलता रहा । संसार में जैसे दिन-रात, पाप-पुन्य, शीतताप, धूप-छाया, चन्द्र-सूर्य और तेज अन्धकार आदि युगल, घटमा