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जैन समाजकी वर्तमान दशापर प्रश्नोत्तर. . (७) ज की मार्थिक स्थिति मजबूत होगी, भोर सेवाभाव से उपरोक तीनों साधनों को उन के कार्य क्षेत्र में सहायता और सफलता मीला करेगी । इसी में ही संसार का परम कल्याण है।
बस ! उन सुधारकोंने स्वकीय विचारों को कार्यरूप में परिणत कर के " यथा गुणा स्तथैव नामा" इस उक्ति को चरितार्थ कर के जन समुदाय को चार विभागों में विभाजित कर दिया।
(१) सद्ज्ञान द्वारा जनता की सेवा करनेवाला जन समूह ब्राह्मण वर्ण कहलाने लगा ( अर्थात् ब्रह्म-परां विद्यां दार्शनिक विचारधारां जानातीति ब्राह्मण:)
(२) उत्कृष्ट पुरुषार्थ याने शौर्य द्वारा समाज की सहायता करनेवाला (अपने नाम को चरितार्थ करता हुआ क्षतान् -पीडान्, त्रायते-रक्षति इति क्षत्रियः) समुदाय क्षत्रिय वर्ण के नाम से प्रसिद्ध हुआ।
(३) द्रव्यार्जन याने पर्याप्त द्रव्य द्वारा संसार का सहायक वर्ग (गोति-रक्षति धनान् इति गुमः) गुप्त अर्थात् वैश्य कहलाया।
(४) सेवाभाव याने अवकाश आदि से जनता की सेवा करनेवाला जन समुह शूद्र कहलाया क्यों कि जिसे पढने पढाने तथा सिखने सिखाने से विद्या और कला कौशल नहीं आया और जिस के अन्दर सेवाभाव जागृत पाया उनको इस समूह में
मीलाया।