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________________ जैन समाजकी वर्तमान दशापर प्रश्नोत्तर. (५) विश्व का प्रवाह और वर्णव्यवस्था. आदि तीर्थकर भगवान् श्रीऋषभदेव जो कि इस अवसपिणी कालापेक्षा जैनधर्म और जगत् में नीति मार्ग प्रचारक आदि पुरुष है, उन्होने क्लेश पीडित, अविद्या अंधकार परावृत युगल मनुष्यों के उद्धार निमित्त असी ( क्षत्रिय-धर्म ) मसी ( वैश्य-धर्म ) कसी ( कृषक-धर्म ) अर्थात् कला कौशल्य, हुन्नर, व्यापार उद्योग, आदि नीति मार्ग बतलाया कि जिस से संसार अपना जीवन नीति, धर्म और सुखमय व्यतीत कर सकें। यह नीति मार्ग चिरकाल तक एकधारावच्छिन्न चलता रहा और उत्तरोत्तर संसार की उन्नत्ति होती रही, चारों और शांति का साम्राज्य था । किन्तु यह बात कुदरत ले सहन न हुई और " कालो याति चक्र नेमी क्रमेण " यह नियमानुसार कालचक्रने पलटा खाया और काल की विकरालता से उस नीति मार्ग में विश्रृंखलता का प्रादुर्भाव हुआ। शांति और कर्तव्य परायणता भाग गये, अशांति राक्षसीने अपना साम्राज्य जमाना शरु कर दीया । जिस प्रकार आगकी किश्चित् मात्र चिनगारी शनैः २ दावानल का रुप धारण कर लेती है, उस तरह समाज में अशांतिने भी क्रमशः अपना एकाधिपत्य जमा लिया । पर, किसी भी कार्य से पूर्ण घृणा न हो जाय, तब तक उसका सुधार होना असंभव है यह ही हाल हमारे भारतवर्ष का हो रहा था, चारों ओर जनता का चित्कार भार्तनाद कर्णगोचर होता था, प्राणि मात्र अशांति से त्रासित हो सुधार की प्रतिक्षा कर रहा था; किन्तु, सुधार करना किसी साधारण
SR No.002448
Book TitleJain Jati mahoday
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyansundar Maharaj
PublisherChandraprabh Jain Shwetambar Mandir
Publication Year1995
Total Pages1026
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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