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________________ (२) जैन जाति महोदय प्रकरण छठा. करते हैं जिससे समाज को लाभ के बदले अधिकाधिक हानी पहुंचती जाती है और क्लेशके कारण समाज अस्तव्यस्त हो गया है। वर्तमानकालिक जैन समाजकी परिस्थीति की तरफ़ उपलक द्रष्टिपात मात्रसे नजर दौडाते हुए, जमाने हालका स्वतंत्र विचारक वर्ग, हमारे परमोपकारी प्रातःस्मरणीय पूर्वाचायोंकी तरफ असत्य भाक्षेपोंकी वर्षा करते हुए इस प्रकार प्रश्न परंपरा उपस्थित करतें है कि:-. (१) श्री रत्नप्रभसूरि आदि प्राचार्योने क्षत्रियोंसे जैन जातियां बनाकर बहुत ही बूरा कीया, यदि ऐसा न हुआ होता तो जैन धर्मकी विश्वव्यापकता आजकल की भांति जैन जाति जैसे संकुचित क्षेत्र में न रह जाती अर्थात् कूपमण्डूकता के भोग न बन जाती ? (२) श्रीमान रत्नप्रभसूरिजी श्रादि प्राचार्योंने क्षत्रिय जैसे बहादूर-वीर वर्णको तोडकर अनेक जातियों व समुदाय में विभक कर दीया; और उस समाजको कायर-कमजोर बनाकर के उसकी सामुदायिक शक्तिको चकनाचूर कर दिया ? (३) जैन जातियां बनजानेसे ही क्षत्रिय वर्गने जैन धर्मसे किनारा लेलिया ? (४) जैन जातियां बनानेसे ही जैन धर्म राजसत्ता विहीन हो गया, तदुपरांत जातियां, फिरके, गच्छ और समुदाय मादिमें पृथक् २ परिणत होजानेसे, जैन जैसे सत्य और सन्मार्ग दर्शक धर्मका गौरव नितान्त ही लुप्त प्राय: सा हो गया ?
SR No.002448
Book TitleJain Jati mahoday
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyansundar Maharaj
PublisherChandraprabh Jain Shwetambar Mandir
Publication Year1995
Total Pages1026
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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