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श्री रत्नप्रभाकर ज्ञान पुष्पमाला पु. नं. १९८
श्री देवगुप्तसूरीश्वर पादपद्येभ्यो नमः
श्री जैन जाति महोदय.
प्रकरण छट्टा.
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जैन समाजकी वर्तमान दशापर उद्भवित प्रश्नोत्तर.
आजकल विचार स्वातंत्र्यका साम्राज्य है, अतः जिस मोर द्रष्टिपात होता है उसी और अर्थात् सर्वत्र समाज, जातियाँ और धर्मके नामसे आक्षेपों तथा समालोचनाओंकी दृष्टि दीख पडती है। वास्तवमें समालोचना संसारमें बुरी बला नहीं है; प्रत्युत समाज तथा जाति की बुराईयों को निकालनेवाली, मार्गोपदेशिका, एवं उन्नत - दायिनी है । जिस समाज में जितने निःस्वार्थ तथा निष्पक्षपात आलोचक है, उतना ही उसके लिये अधिक लाभदायी है । किन्तु अनुभवने इससे प्रतिकूल ही भान कराया. वर्तमान में कुत्सित भावनाओं को आगे रखकर आलोचक आक्षेपपुझसे कुलोचना किया