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मारवाड़ प्रान्त.
(२३३) ख्यात है । इस प्रान्त में भी मारवाड़ से गये हुए कई व्यापारी मौजूद हैं।
११ मे [ मेवाड़ ( मेदपाट ) प्रान्त ] इस प्रान्त में भी जैन धर्म प्राचीन समय से प्रचलित था तथा चित्रकूट के पंवार वंशी नृप भी जैनी ही थे। इस प्रान्त में श्री केसरियानाथजी महाराज का धाम अति प्राचीन एवं प्रख्यात है। चित्तोड के गणा भी जैन धर्म का उचित श्रादर करते थे । इनके वंश में आज तक इस धर्म को उच्च स्थान मिलता पाया है । गव रिडमलजी तथा योधाजी के समय में बहुत से मारवाड़ निवासी जैन जोग, मेवाड में जा बसे थे । उन लोगों का सम्बन्ध कई वर्षों तक माग्वाड़ से रहा है। श्री सिद्धगिरि के अन्तिम उद्धारक स्वमान धन्य कमांशाहने इसी प्रान्त में जन्म लिया था । धन्यधरा मेवाड़ !
१२ [ मारवाड़ प्रान्त ] यह प्रान्त जैन जातियों का उत्पत्ति स्थान है । प्राचार्य स्वयंप्रभसूरी तथा प्राचार्य श्री रत्नप्रभसूरीने इस प्रान्त में पदार्पण कर वाममार्गिों के अत्याचार रुपी गढ़ों पर
आक्रमण कर उन्हें दूर किया तथा महाजन वंश की स्थापना की थी उस समय से चिरकाल तक तो इस प्रान्त में जैन धर्म राष्ट्र धर्म के रूप में रह। तथा उन्नति के सर्वोच्च शिखर पर इस की पताका फहराने लगी। किन्तु विक्रम की छठी शताब्दी में यहाँ के निवासी राज्य कष्ट से दुःखी हो इस प्रान्त को छोड़ कर आसपास के अन्य प्रान्तों में जा कर वास करने लगे। यह सिलसिला अब तक भी जारी है।