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________________ ( २३२ ) जैन जाति महोदय प्रकरण पांचवा. के समय में भी जैन धर्म प्रचुरता से प्रचारित था । माडवगढ़ के पेथड नामक महामंत्री के तथा संग्राम सोनी के समय तक भी जैन धर्म का उचित प्रचार जारी था और बुन्देलखण्ड के राजा भी प्रायः जैनधर्मोपासक ही थे । अर्थात् विक्रमकी सोलहवीं शताब्दी तक तो जैन धर्म इस मालवा प्रान्त में उन्नत अवस्था में था किन्तु आज जो यहाँ के जैनी हैं ये तो मारवाड़ से गये हुए ही हैं। इस प्रात में नी, मक्क्षी और माण्डवगढ़ नगर में अति प्राचीन तीर्थ भाजला विद्यमान हैं । १० [ मध्यप्रान्त ] इस प्रान्त में जैनधर्म प्राचीन समय प्रचलित है। शौरीपुर, मथुरा, हस्तिनापुर आदि तीर्थ बड़े प्राचीन हैं। यह प्रान्त आजकल के कहलाए जानेवाले मध्यप्रान्त Central Provinces ) से भिन्न है । श्राचार्यश्री स्कन्धिल सूरीजीने मथुरा नगरी में एक बृहत् साधु सम्मेलन किया था तथा प्रागमों को पुस्तक के रूप में लिखाने का प्रस्ताव पास करा बहुत सा इस विषय सम्ब कार्य भी किया था । हम बड़े कृतघ्न कहलावेंगे यदि उनके इस असीम उपकार को भूल जाय । आज पर्यन्त इसी प्रयत्न के परिणाम स्वरूप माथुर वाचना लोक प्रसिद्ध हैं । क्यों न हो ? कोई भी I किया हुआ सद् प्रयत्न कभी विफल नहीं हो सकता । इस प्रान्त में समय समय पर बड़े दानवीर नररत्नों का अवतरण हुआ है । विक्रम की नौवीं शताब्दी में ग्वालियर के नृपति श्रम जैनधर्म उपासक ही नहीं बरन परम प्रभावशाली तथा उत्कट ओजस्वी प्रचारक भी था । इनकी संतान राज कोठारी के नाम से भाज लाँ जैन जाति में प्र
SR No.002448
Book TitleJain Jati mahoday
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyansundar Maharaj
PublisherChandraprabh Jain Shwetambar Mandir
Publication Year1995
Total Pages1026
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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