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अवन्ती देश.
( २३१ ) न्तर घटती रहीं। ऐसे अनेक घृणित और निष्ठुर उपाय किये गए कि जिनका वर्णन करते लेखनी काँपती है- सहस्रों जैन मुनि कत्ल किये गये केवल इसी कारण कि वे जैन धर्मोपासक थे । अत्याचार की कोई सीमा न थी । जैनियों को इस इस तरह के बिना कारण दगड दिये गये कि उन्हें विवश होकर अपना धर्म परिवर्तन करना पड़ा । यही सिद्धान्न चला Might is right जिसकी लाठी उसकी भैंस, जो अपने जैनधर्म पर पक्के रहे उन्हें अपना प्राण परित्यागन करना पड़ा । इसके फलस्वरूप उस ग्रान्त में जैनियाँ की आवादी शीघ्र ही लुम हो गई । किन्तु आज भी गये गुजरे जमाने में महाराष्ट्र प्रान्त में जहाँ तहाँ जैन तीर्थ एवं जैन गुफाऐं त्रिपुल संख्या में विद्यमान
। इस से स्पष्ट प्रकट होना है कि जैनियों का अतीत तो प्रति उज्जवल एवं उत्तम था । अर्वाचीन काल में तो इने गिने जैनी इस प्रान्त में दृष्टिगोचर होते हैं इनके सिवाय सत्र मारवाड़ तथा गुजरात प्रान्त से गये हुए हैं । जिस प्रान्त में प्रचुरता से जैनी पाए जाते थे वहाँ आज केवल प्राकर बसे हुए जैनी मात्र प्रायः दिखाई देते हैं ।
६ [ अवन्ती प्रदेश । ] इस प्रान्तः की राजधानी उज्जैन में जिस समय त्रिखण्डभुक्ता महाराजा सम्प्रति राज्य कर रहा था उस समय इस प्रान्त में जैन धर्म का श्रविच्छन्न साम्राज्य प्रसारित था । श्राचार्य श्री सिद्धसेन दिवाकरजीने महाराजा विक्रम को प्रतिबोध देकर जैनी बनाया था; उसने भी जैनधर्म का खूत्र प्रचार किया था | उसने जी जान से प्रयत्न करके अपने साम्राज्य में जैनधर्म को खून प्रसारित होने दिया । इसके अतिरिक्त गजा भोज