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________________ महाराष्ट्र प्रान्त. ( २२९) सौराष्ट्र प्रान्त को देदीप्यमान कर रहा था। भीनमाल के नरेश महरगुल के अत्याचार से उत्पीडित हुए मारवाड़ निवासी विक्रम की छठी शताब्दी में गुजरात में आ बसे थे । पाटण की स्थापना से लेकर विक्रम की तेरहवीं तथा चौदहवीं शताब्दी पर्यन्त तो मारवाड़ प्रान्त से अनेक महाजन संघके सद्गृहस्थ विपुल संख्या में जा जा कर गुजरात में निवास करने लगे थे। आज जो सूरत, भरुच, बड़ौदा, खम्भात, भावनगर और अहमदावाद आदि नगरों में जैन ओसवाल. पोरवाल तथा श्रीमाल धनी संख्या में बसते हैं ये सब के सब मारवाड़ ही से गये हुए हैं। अपनी आवश्यक्ताओं को पूर्ण करने के लिये उन्हें मारवाड़ छोड़ कर वहाँ बसना पड़ा । विक्रम की सोलहवीं तथा सत्रहवीं शताब्दी तक तो मारवाड़ से कुलगुरु गुजरात में जा कर अपने श्रावकों की वंशावली लिख पाया करते थे । उन वंशावलियों से स्पष्ट सिद्ध होता है कि मारवाड़ से जो जैनी गुजरात की ओर गये थे उन की संख्या बहुत थी। इस अर्वाचीन काल में जो जैनधर्म का अभ्युदय गुजरात प्रान्त में विशेष दिखाई देता है उस का वास्तविक कारण यही है। ८ महाराष्ट्र प्रदेश ] भारत के दक्षिण के खानदेश, करणाटक, तैलङ्ग आदि प्रान्तों में भी प्राचीन समय में जैनधर्म प्रचलित था । जिस समय भारत के पूर्वीय भाग में अकाल का दोरदौरा था तो आचार्य भद्रबाहु स्वामीने अपने सहस्रों मुनियों के साथ दक्षिण के प्रान्तों में ही विहार किया था। आपने उस समय दक्षिण के तीथों की यात्रा भी की थी यह बात उस समय के
SR No.002448
Book TitleJain Jati mahoday
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyansundar Maharaj
PublisherChandraprabh Jain Shwetambar Mandir
Publication Year1995
Total Pages1026
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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