________________
कच्छ प्रान्त.
- ( २२७ ) ६ [ कच्छ प्रान्त ] विक्रम के पूर्व की तीसरी शताब्दी में जैनाचार्य श्री कक्वसूरीजी महाराजने इस प्रान्त में पदार्पण कर जैनधर्म का प्रचार प्रारम्भ किया था । कक्वसूरी महाराजने कच्छ निवासियों पर बड़ा भारी उपकार किया । उन्हें जैनधर्म के परमपवित्र कल्याणकारी मार्ग का पथिक बनाने वाले जैनाचार्य श्री कक्वसूरी ही थे । इन के पीछे इन के पट्टवर शिष्योंने भी प्रचार का कार्य इस प्रान्त में जारी रखा । इन में आचार्य श्री देवगुप्रसूरीजी ही मुख्य प्रचारक थे । कच्छ के कोने कोने में जैनधर्म का दिव्य मंदेश सुनाया गया था । लोगोंने इस धर्म को अपनाया भी खूब इन के शिष्य तथा प्रशिष्यों और परम्परागत शिष्योंने भी इसी प्रान्त में विहार किया था । इतिहास देखने से विदित होता है कि विक्रम की चौदहवीं शताब्दी तक तो इस प्रान्त में झगडूशाह जैसे दानवीर जैनी हो चुके हैं। ऐसे ऐसे नररत्नोंने इस प्रान्त में जन्म ले जैनधर्म को पालन कर खूब यश कमाया। वैसी जाहोजलाली इस प्रान्त की अय न रही पर जैनधर्म की कुछ न कुछ प्रवृत्ति तो इस प्रान्त में अब लों विद्यमान रही है । समय समय पर कई मारवाड़ी भी मारवाड़ से यहाँ आ बसे । यहाँ गतिलोग भी गहरा संख्या में रहते थे । विक्रम की पंद्रहवीं शताब्दी तक तो मारवाड़ से कुलगरु जाकर अपने श्रावकों की वंशावली लिख आया करते थे जो कि अबतक भी विद्यमान है। . ७ [ सौराष्ट्र ( सोरठ) प्रान्त | ] इस प्रान्तमें प्राचीन कालसे ही जैनधर्म प्रचलित है। इस प्रान्तमें दो बड़े प्रसिद्ध