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( २२३) जेन जाति महोदय प्रकरण पांचवा. पकेश गच्छोपासकों की देखरेख में ५०० जैन मन्दिर विद्यमान थे, इससे अनुमान हो सकता है कि उन मन्दिरों के उपासक भी बड़ी विशाल संख्या में थे।
___ उस समय के पश्चात् अत्याचारी यवनोंने जैनियों को बहुत सताया और उन्हें इसी कारण से इस प्रान्त को परित्याग करना पड़ा । वे आसपास के प्रान्तों में यवनों के अत्याचारों से जब कर जा बसे । इस प्रान्त में विक्रम की चौदहवीं शताब्दी तक तो जैनियों की गहरी आबादी थी। इस का प्रमाण यह है कि वंशावलियों में लिखा हुआ पाया गया है कि सिन्ध निवासी महान् धनी लुणाशाह नामक सेठ अपने कुटुम्ब और अन्य लोगों के साथ मरुधर प्रान्त में आया था। जिस प्रान्त में ऐसे . ऐसे धनी
और मानी सेठ रहते थे आज उस प्रान्त में केवल मारवाड़ और गुजरात से गये हुए कतिपय लोग जैन ही पाये जाते हैं । इस का वास्तविक कारण यह था कि जैनधर्म के उपदेशकों का पूरा प्रभाव था । आम तौर से जनता सरल परिणाम वाली होती है जब कोई सत्य मार्ग बतानेवाला नहीं होता है तो यह स्वभाविक ही है कि वह भटक कर अन्य रास्ते का अवलम्बन करले । इस प्रकार से सिन्ध के खास जैनी पाज नाम को भी नहीं रहे । किसी ने सच कहा है कि Misfortumes never come single यानि आफतें कभी अकेली नहीं आती। जो दसा बङ्गाल तथा कलिङ्ग पादि के जैनियों की हुई थी वही दशा इस प्रान्त के जैनी लोगों की हुई।