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सिन्ध प्रान्त.
(१२५) समय पञ्जाब में जैनियों की घनी बस्ती थी। यह धर्म पञ्जाब में निरन्तर पाला गया। आज जो जैनी इस प्रान्त में दृष्टिगोचर होते हैं उनमें से अधिकाँश मारवाड़ ही से गये हुए लोग हैं।
__ अब से थोड़े समय पहले पञ्जाब में जैनियों की विस्तृत बस्ती थी । आज जो जैनधर्म का अस्तित्व पञ्जाब प्रान्त में पाया जाता है यह वास्तव में जैनाचार्य श्री देवगुप्तसूरीजी एवं सिद्धसूरी जाँके परिश्रम का ही परिणाम है । यह उन्हीं की कृपा का फल है कि भाजला जैनधर्म की पताका पञ्जाब में फहराती रही है।
५ (सिन्ध प्रान्त । ) विक्रम के पूर्व की तीसरी शताब्दी में आचार्य श्री यक्षदेवसूरीने सिन्ध प्रान्त में प्रचार का झंडा रोपा
और वहाँ के लोगों को विपुल संख्या में जैनी बनाया। आपश्री की व्यवस्था से जैनधर्म की नींव इस प्रान्त में पड़ी तथा इनके पश्चात् प्राचार्य श्री कक्वसूरीजीने उस नींव को दृढ किया । बहुत परिश्रम के पश्चात् सिन्ध प्रान्तमें सर्वत्र जैनी ही जैनी दृष्टिगोचर होने लगे। सिन्ध प्रान्त के कोने कोने में जैनधर्म का उपदेश सुनाया गया तथा अँड के अँड जैनी जिनशासन की शीतल छाया में शान्ति पूर्वक रहते हुए अपनी आत्मा का उत्थान करने लगे। बाद में इन के शिष्य समुदायने भी इस प्रान्त में विचरण किया तथा जैनधर्मावलम्बियाँ की संख्या निरन्तर वृद्धिगत होती रही । उपकेश गच्छ चरित्र से विदित हुआ है कि विक्रम की तेरहवीं शताब्दी में आचार्य श्री कक्वसूरी के समय पर्यन्त केवल एक उ.