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________________ खेखक का परिचय. (१७) कालू से विहार कर भाप लाम्बिया, केकीन हो अजमेर होते हुए ब्यावर पधारे । वहाँ से बिहार करते करते आपने निम्न लिखित ग्राम और नगरों में पधार कर धर्मोपदेश दियाः-रायपुर, झूटा, पीपलिया, चंडाबल, सोजत, पाली, पीपाड़, नागोर और बीकानेर । विक्रम सं. १९६८ का चातुर्मास (बीकानेर)। इस वर्ष आपश्री का चातुर्मास दूसरी बार बीकानेर में हुमा। यहाँ भापका यह पाँचवा चातुर्मास था। स्वामी शोभालालजी के आप साथ थे । आपका ज्ञानाध्ययन निरन्तर चालू था। यह एक स्वाभाविक नियम है कि जिस व्यक्ति की धुन एक बार किसी काम में सोलह आना लगजाती है फिर वह यदि पुरुषार्थी है तो उस कार्यको पूरा करके छोड़ता है इस बार भी आपका ज्ञानाभ्यास का क्रम पहले की भांति असाधारण ही था। स्वामीजी की सेवा भक्ति करते हुए मापने १०० थोकड़े तत्वज्ञान के याद करने के साथ ही साथ श्री भगवतीजी सूत्र, पन्नवणा सूत्र, जीवाभिगम सूत्र, अनुयोग द्वार सूत्र और नंदीसूत्र की बापने वांचना की। आप सदा ज्ञान प्राप्ति में ही आनंद मानते रहे हैं तथा मापने अपने जीवन का एक उ. रेश ज्ञान प्रहण तथा ज्ञान प्रचार करना रक्खा है। इस में पाप श्री को वांछनीय सफलता भी मिली है। . इस वर्ष आपने चातुर्मास में इस प्रकार तपस्या की-पंचोला
SR No.002448
Book TitleJain Jati mahoday
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyansundar Maharaj
PublisherChandraprabh Jain Shwetambar Mandir
Publication Year1995
Total Pages1026
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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