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जैन जातिमहोदय. द्वीप पन्नति, ज्ञातासूत्र, उपासक दशांग, अणुत्तरोववाई, अन्तगढ़ दशांग, पांच निरियावल का सूत्र और विपाक सूत्र । ज्याँ ग्याँ
आप आगमों का अध्ययन करते रहे त्याँ त्याँ आप को ज्ञान की जिज्ञासा बड़ी। भाप का सारा समय इसी प्रकार व्यतीत होता रहा । एक के बाद दूसरा इस प्रकार व्यवस्थापूर्वक आपने अनेक आगमों का अवलोकन किया ।
जो क्रम शाप के ज्ञानाभ्यास का था वही क्रम तपस्या का भी रहा। इस वर्ष कालू में भी आप तपस्या करते रहे जो इस प्रकार थी । अठाई १, पचोले २, तेले ८ तथा आपने एकान्तर उपवास दो मास तक किये। इस प्रकार निर्जरा करते हुए आपने अतुल धैर्य का परिचय दिया । आप की लगन का वर्णन करना अकथनीय है । जिस कार्य में आप हाथ डालते हैं उस में अन्ततक स्थिर रहते हैं।
इस ग्राम में श्राप कई बार मिलाकर लगभग आठ मास रहे जिस में १२ सूत्र व्याख्यान में वांचे । इस के अतिरिक्त समय समय पर आपने कई चरित्र सुना कर भी कालू निवासियों की ज्ञान पिपासा को अच्छी तरह से शांत किया । इस पिपासा को शांत करने में आपने ऐसी खूबी से काम लिया कि वे लोग अधिक श्रुतज्ञान का श्रास्वादन करना चाहने लगे। ज्या ज्याँ मापने ज्ञानपिपासा शान्त करने का प्रयत्न किया त्यां त्यां उनकी जिज्ञासा अधिक बढ़ती ही गई।