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________________ लेखक का संक्षिप्त परिचय. ( १५ ) दिया उसी प्रकार तपस्या में भी अपूर्व वृद्धि की । आपने यकायक मासखमण तप का आराधन निर्विघ्नपूर्वक किया । इस के साथ तेले ३ तथा एक मास तक एकान्तर तप किया । सचमुच कर्म काटने को कटिबद्ध होकर आपने अलौकिक वीरता का परिचय दिया । व्याख्यान के अन्दर आप भावनाधिकार पर सुमधुर वाणी से श्रोताओं के शंकाओं की खूब निवृति करते थे । इस वर्ष अपने आधे चातुर्मास अर्थात् दो मास तक धारा प्रावादिक उपदेश दिया। जोधपुर नगर से विहार करके आप सालावास, रोहट, पाली, बूसी, नाडोल, नारलाई, देसूरी होकर पुनः पाली पधारे । वर्ष के शेष महीनों में आपने सोजत, सेवाज बगड़ी चण्डावल जेतारण तथा बलूंदा और कालू में पधार कर ज्ञानोपार्जन तथा तपश्चर्या करते हुए भी उपदेशामृत का पान कराया । विक्रम सं. १६६७ का चातुर्मास ( कालू ) । इस बार आपने चतुर्थ चातुर्मास कालू ( आनन्दपुर ) में अकेले ही किया | इस प्रकार अकेले रहने का कारण विशेष था । आत्मकल्याण के हित ही आपने इस प्रकार की योजना की थी । इस चातुर्मास में भी आप का ज्ञानाभ्यास पहले की तरह जारी था । आपने २५ थोकड़े निशीथसूत्र व्यवहारसूत्र वगैरह इस वर्ष भी कण्ठस्थ किये तथा निम्नलिखित आगमों का अध्ययन तो मनन पूर्वक किया - उपवाईजी, रायपसेणीजी, जम्बू
SR No.002448
Book TitleJain Jati mahoday
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyansundar Maharaj
PublisherChandraprabh Jain Shwetambar Mandir
Publication Year1995
Total Pages1026
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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