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________________ ( २२२) जैन जाति महोदय प्रकरण पांचवा. १ [ नेपाल प्रान्त ] जब भारत के पूर्वमें भीषण दुष्काल पड़ा था तो प्राचार्य भद्रबाहुरिने अपने पांचसौ शिष्यों सहित नेपालमें विहार किया था इनके अतिरिक्त और भी कई साधु इस प्रदेशमें विचरण करते थे । इससे सिद्ध होता है कि इस समय जैनों की घनी वस्ती उस प्रान्तमें होगी। इतने मुनिराजों का निर्बाह व्रतपूर्वक बिना जैनजाति के लोगों के होना अशक्य था। इस पर भी जिस प्रान्तमें भद्रबाहुसूरि जैसे चमत्कारी और उत्कट प्रभावशाली प्राचार्य विहार करते रहे. उस प्रान्त में जिन शासन की इस प्रकार की बढ़ती हो तो कोई प्राश्चर्य की बात नहीं है । किन्तु इस बात को जानने का कुछ भी साधन नहीं है कि भद्रबाहसरि के पश्चात् जैनधर्म किस प्रकार नेपाल में न रहा । हाँ, खोज करने पर केवल इतना प्रकट होता है कि विक्रम की दसवीं तथा ग्यारहवीं शताब्दियों में नेपाल प्रदेश में जैनधर्म का प्रचार था । नेपाल के व्यापारी इस ओर आते और यहां से. बहुत सा मान ले जाते थे इस प्रकार परस्पर विचार विनिमयका साधन बना हुआ था। २ (अङ्ग बज और मगध प्रान्त ) प्रातः स्मरणीय भगवान महावीरस्वामी एवं उनके शिष्य प्रशिष्यों का विहार प्रायः इसी प्रान्त में हुआ था । महाराजा श्रीणिक, कौणिक, उदाई, नौ नंदनृप, मौर्य सम्राट, चन्द्रगुप्त तथा सम्प्रति नरेश के राज्यकाल में तो जैनधर्म ही राष्ट्रधर्म था। उस समय जैनधर्म का प्रवेश प्रत्येक घर में हो चुका था । अहिंसा की पताका सतत भारत भूमि पर
SR No.002448
Book TitleJain Jati mahoday
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyansundar Maharaj
PublisherChandraprabh Jain Shwetambar Mandir
Publication Year1995
Total Pages1026
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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