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जैन जातियाँका महोदय.
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३ इस्लाम धर्म के संस्थापक पैगम्बर महमूद के पूर्व मक्कामें भी जैन मन्दिर विद्यमान था । किन्तु काल की कुटिलता से जब जैनी लोग उस देशमें न रहे तो ' महुवा ( मधुमति ) के दूरदर्शी श्रावक मकेसे वहाँ स्थित मूर्त्तियों ले जाए तथा अपने नगरमें उन्हें प्रतिष्ठित कर ली जो आज पर्यन्त भी विद्यमान हैं इससे सिद्ध होता है कि ऐशिया के ऐसे ऐसे रेगीस्तानों में भी जैनधर्म के व्रतधारी श्रावकों का वास था । यह क्षेत्र दुर्लभ था तथापि प्रयत्न करनेवाले तो वहाँ भी प्रचार हेतु पहुँच गये थे; तो कोई कारण नहीं दिखता कि वे अन्य सुलभ प्रान्तों में न गये हों ।
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४ महाराजा सम्प्रति के चरित्र से स्पष्ट ज्ञात होता है कि इनके प्रयत्नसे कई सुभट अनार्य देशोंमें साधु के वेषमें इस कारण भेजे गये थे कि वहाँ जाकर इष्ट क्षेत्र को साधुओं के विहार योग्य बना दें और इस कार्य में पूर्ण सफलता भी उन्हें मिली | कई साधु अनार्य देशों में गये और वहाँ के लोगों की जैनधर्म पर श्रद्धा उत्पन्न कराने में समर्थ हुए |
उपर्युक्त वर्णन से मालूम होता है कि अनार्य देशों में भी जैनियों की घनी बस्ती थी । वहाँ के लोग भी जैन धर्म का पालन कर अपने मानव जीवन को सफल करते थे । ऐसी दशामें जब कि दूर दूर के देशोंमें जैनधर्माबलम्बी विद्यमान थे तो यह स्वाभाविक ही है कि भारत के कोने कोने में जैनधर्म की ज्योति जागृत हुई हो। इस बात को स्वीकार करते किसी भी प्रकार का संदेह नहीं हो सकता ।