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जैन जाति महोदय प्रकरण पांचवा.
हुआ
लिखा है कि मगध नरेश नंदराजा कलिङ्ग देश से भगवान् ऋषभदेव की स्वर्णमय मूर्त्ति ले गया था जिसे खारवेल वापस आया । इस स्थल पर यह बात विचार करने योग्य है कि जिस मन्दिर से नंदराजा मूर्त्ति ले गया होगा वह मन्दिर नंदराजा से प्रथम का बना हुआ था यह स्वयंसिद्ध है। यह मन्दिर कितना पुराना था इस विषय में मालूम हुआ है कि उस समय वह मन्दिर विशेष पुराना नहीं था कारण कि वह मन्दिर श्रेणिक नरेश से बनवाया हुआ था | इधर नंदराजा और श्रोणिक राजा के समय में अधिक अन्तर न होने से यह बात सत्य होगी ऐसी सम्भावना हो सक्ती है ।
दूसरी बात यह है कि श्रेणिक राजाने जिस मन्दिर को बनवाया होगा वह दूसरे मन्दिर को देखकर ही बनवाया होगा । इससे सर्वथा सिद्ध होता है कि श्रेणिक राजा के समय से भी प्राचीन मन्दिर उपस्थित थे । श्रेणिक राजा भगवान महावीर के | समय में हुआ था और वह भगवान का चूर्ण भक्त भी था । यदि जिन मूर्त्ति बनाना जिन धर्म के सिद्धान्तों के विरुद्ध होता तो अवश्य अन्यान्य पाखण्ड मतों के साथ मूर्त्ति पूजाका भी कहीं खंडनात्मक विवरण होता पर ऐसा किसी भी शास्त्र में नहीं है । अतएव मूर्ति पूजा भगवान को भी मान्य थी ऐसा मानना पड़ेगा | कुमार पर्वत की गुफाओं में चौबीस तीर्थकरों की मूर्त्तियाँ खारवेल के समय के पहले की अबतक भी विद्यमान हैं। मूर्त्ति मानना या मूर्त्ति न मानना यह दूसरी बात है पर सत्य का खून करना यह सर्वथा अन्याय है ।