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खारवेल राजा.
( २१७)
महाराजा खारवेलने विस्मृत होते | महाराजा खारवेलने जैनागमों को भागमों को फिरसे लिखाया । | ताड़पत्रों मादिपर लिखाया ।
महाराजा खारवेलने जनहित कूए, | महाराजा खारवेलने जनता के हि. तालाब, बाग, बगीचे कराए तथा वह | तार्थ भनेक शुभ कार्य किये। मगध से नहर लाया।
महाराजा खारवेल के शिलालेख से तीन या चार सौ वर्ष पश्चात् लिखे हुए जैनाचार्य के इतिहास की सत्यता की प्रमाणिकता ऊपर के कोष्टकों से साफ मालूम होती है इस लिये जैनाचार्यों के लिखे हुए अन्य इतिहास पर हम विशेष विश्वास कर सकते हैं। अब रही बात समय की सो तो इतिहासकारोंने भी अब तक समय निश्चित नहीं किया है। आशा है कि ज्याँ ज्याँ अनुमंधान किया जायगा त्याँ त्या इस विषय की सत्यता भी प्रकट होकर प्रमाणिक होती जायगी।
जैन श्वेताम्बर समुदाय में लगभग ४५० वर्षों से एक स्थानकवासी नामक फिरका पृथक् निकला है । इस मत वालों का कहना है कि मूर्ति पूजा प्राचीन काल में नहीं थी यह पर्वाचीन समय में ही प्रचारित की गई है । इस विषय के लिये बाद विवाद ४५० वर्षों से चल रहा है । इस वाद विवाद की मोट में हमारी अनेक शक्तियाँ क्या शारीरिक और क्या मानसिक व्यर्थ नष्ट हो रही है। । किन्तु महाराजा खारवेल के शिलालेख से यह समस्या शीघ्र ही हल हो जाती है क्योंकि इस शिलालेख में साफ साफ