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( २१६) जैन जाति महोदय प्रकरण पांचवा.
विक्रमराय के पश्चात् गद्दी का अधिकारी उस का पुत्र बहुदराय हमा। इसने भी अपने पिता और पितामह की भांति सम्यक्प्रकार से शासन किया तथा जैनधर्म के प्रचार में अपने अमूल्य समय शक्ति और द्रव्य को लगाया। इस के आगे का इतिहास दूसरे प्रकरणों में लिखा जायगा।
विक्रम से दो सदियों पूर्व के शिलालेख तथा विक्रम की दूसरी सदी के लिखित जैन इतिहास में समय के अतिरिक्त बहुतसी दूसरी बातें मिलती हैं जो इस प्रकार हैं:महाराजा खारवेल के । जैनाचार्योद्वारा लिखित
शिलालेख से कलिक के रजा खेमराज बुद्धराज कलिंगपति महाराजा खेमराज बुद्धऔर खारवेल ( भिक्षुराज) | राज और खारवेल ।
खण्डगिरि उदयगिरि पर जैन मन्दिर, कुमार कुमारी पर्वतपर जैनमन्दिर जैन गुफाऐं।
| जैन गुफाऐं। मगध का नंदराजा कुमार पर्वतपर | मगध का नंदराजा कुमारपर्वतपर से से स्वर्णमय जिनमूर्ति ले गया। स्वर्णमय जैनमूर्ति ले गया ।
महाराजा खारवेल मगध से जिन- महाराजा खारवेक मगब से जिनमर्ति वापस कलिक में ले प्राया। मूर्ति वापस कलिंग में भावा ।
महाराजा खारवेलने कुमार पर्वतपर | महाराजा खारवेलने कुमार पर्वतपर एक सभा की थी।
एक सभा की थी। .
___ इतिहास में.