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खारवेक राजा
। २१३) प्रादि ३०० मुनि और पइणि प्रादि ७०० मार्यिकाऐं, कई गजा, महाराजा, सेठ तथा साहुकार प्रादि भनेक लोग विपुल संख्या में उपस्थित थे । इस प्रकार का जमघट होनेके कई कारण थे । प्रथम तो कुमार गिरि की तीर्थ यात्रा, द्वितीय मुनिगजों के दर्शन, तृतीय स्वधर्मियों का समागम तथा चतुर्थ जिन शासन की सेवा, इस प्रकार के एक पंथ दो नहीं किन्तु चार काम सिद्ध न करनेवाला कौन अभागा होगा ? स्वामन समिति की प्रोग्मं मन खोल कर स्वागत किया गया । खाग्वेन नरेशने अतिथियों की सेवा करने में किसी भी प्रकारकी त्रुटि नहीं रक्खी । इस सभा के मभापति प्राचार्य श्री सुस्थि सूरी चुने गये । भाप इस पद के सर्वथा योग्य थे । निश्चित समय पर सभा का कार्य प्रारम्भ हुमा । सब से पहले नियमानुसार मङ्गला. चरणा किया गया। इसके पश्चान सभापतिने अपनी श्रोग्से महत्व पूर्ण भाषण देना प्रारम्भ किया । प्रथम तो आपने महावीर भगवान के शासन की महत्ता सिद्ध की। मापने अपनी वाकपटुता से सारे श्री. तामों का मन अपनी ओर आकर्षित कर लिया। आपने उस समय दुष्काल का विकराल हाल तथा जैन धर्मावलम्बियों की घटती, भागमोंकी बरबादी, धर्म प्रचारक मुनिगणों की कमी, प्रचार कार्य को हाथ में लेनेकी श्रावश्यक्ता प्रादि सामयिक विषयों पर जोरदार भापण दिया । श्रोता टकटकी लगाकर सभापति की ओर निहारते थे। म्याख्यान का भाशातीत असर हुआ । . भाषण होने के पश्चात् खारवेल नरेश ने भाचार्यश्री को नमस्कार किया तथा निवेदन किया कि भाप जैसे