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________________ खारवेल राजा (२११) . महाराजा खारवेल बड़ा ही पराक्रमी राजा था। वह केवल जैन धर्म का उपासक ही नहीं वरन् अद्वितीय प्रचारक भी था । वह अपनी प्रजा को अपने पुत्र की नाई पालता था । मार्वजनिक कामों में खारवेल बड़ी अभिरुचि रखता था । इसने अनेक कूए, तालाव, पथिकाश्रम, औषधालय, बाग और बगीचे बनाए थे । कलिङ्ग देश में जल के कष्ट को मिटाने के लिये मगध देश से नहर मंगाने में भी खारवेल ने प्रचुर द्रव्य व्यय किया । पुराने कोट, किले, मन्दिर, गुफाएं और महलों का जीर्णोद्धार कराने में भी खारवेल ने खूब धन लगाया था। दक्षिण से लेकर उत्तर तक विजय करते हुए उसने अन्त में मगध पर चढ़ाई की। उस समय मगध के सिंहासन पर महा बलवान पुष्प मंत्री ( वृहस्पति ) प्रारोहित था । उसने अश्वमेध यज्ञ कर चक्रवर्ती राजा बनने की तैयारी की थी। पर खारवेल के प्राक्रमण से उसका मद चूर्ण हो गया । मगध देश की दशा दयनीय हो गई। यवन गजा डिमित अाक्रमण करने के लिये आया था पर खारवेमकी वीरता सुनकर मथुग से ही वापस लौट गया। खारवेल ने मगध से बहुत सा द्रव्य लूट कर कलिङ्ग में एकत्रित किया। उसने धन भी लूटा और वहाँ के राजा पुष्प मंत्री को अपने कदमों में काया । जो मूर्ति नंदराजा कलिङ्ग से ले गया था वह मूर्ति खारवेल वापस ले प्राया। इसके अतिरिक्त कुमार पर्वत पर प्राचीन समय में श्रेणिक नृप द्वाग निर्माणित ऋषभदेव भगवान के भव्य मन्दिर का जीर्णोद्धार भी इसने कराया । इसी मन्दिर में वह मूर्ति प्राचार्य श्री सुस्थितसुरी के करकमलों से प्रतिष्ठित कगई गई । इस कुमार कुमारी पर्वत पर
SR No.002448
Book TitleJain Jati mahoday
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyansundar Maharaj
PublisherChandraprabh Jain Shwetambar Mandir
Publication Year1995
Total Pages1026
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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