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जैन जाति महोदय प्रकरण पांचवा.
धर्म की जगह धीरे धीरे बोद्ध धर्म लेने लगा । ब्राह्मण धर्म वाले कलिङ्ग को अनार्य देश कहते थे इस कारण अशोक के माने के पहिले कलिङ्ग वासी सब जैन धर्माबलम्बी थे ।
तत् पश्चात् खेमराज का पुत्र बुद्धराज कलिङ्ग देश में तख्तनशीन हुआ । यह बड़ा वीर और पराक्रमी योद्धा था । इसने कलिङ्ग देश को जकडनेवाली जंजीरों को तोड़ कर इसे स्वतंत्र किया पर मगध का बदला तो यह भी न ले सका । वैसे तो कलिङ्ग नरेश सब के सब जैनी ही थे पर बुद्धराजने जैन धर्मका खूब प्रचार किया । अपने T राज्य के अन्तर्गत कुमारगिरि पर्वत पर उसने बहुत से जैन मन्दिरों का जीर्णोद्धार कराया । नये जिन मन्दिरों के अतिरिक्त उसने जैन श्रमके लिये कई गुफाएँ भी बनवाई | क्योंकि उस समय इनकी नितान्त आवश्यक्ता थी ।
महाराजा बुद्धराजने बड़ी योग्यता से राज्य सम्पादन किया । किसी भी प्रकार के विघ्न बिना शान्ति पूर्वक राज्य सम्पादन करने में यह बड़ा दक्ष था | अन्त में इसने अपना राज्याधिकार अपने योग्य पुत्र भिक्षुराज को प्रदान कर दिया, राज्य छोड़ कर बुद्धरायने अपनी शेष भायु बड़ी शान्ति से कुमार गिरि के पवित्र तीर्थ पर निवृत्ति मार्ग से बिता कर समाधिमरण को प्राप्त कर स्वर्गधाम सिधाया ।
ई. स. १७३ पूर्व महाराजा भिक्षुराज सिंहासनारुढ हुआ । यह चेत (चैत) वंशीय कुलीन वीर नृप था । श्रापके पूर्वजों से ही वंश में महामेघवाहन की उपाधी उपार्जित की हुई थी । इनका दूसरा नाम खारवेल भी था ।