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जैन जति महोदय प्रकरण पांचवा.
जैन लेखकोंने महाराजा खारवेल का इतिहास कलिंगपति महाराजा सुलोचन से प्रारम्भ किया है । परन्तु इतिहासकारोंने प्रारम्भ में कलिंग के एक सुरथ नाम राजा का उल्लेख किया है । कदाचित् सुलोचन का ही दूसरा नाम सुरथ हो । कारण इन दोनों समय में अन्तर नहीं है ।
भगवान महावीर स्वामी के समय में कलिंङ्ग देश की राजधानी कवानपुर में था श्र महाराजा सुलोचन राज्य करता था । सुलोचन नरेश की कन्या का विवाह वैशाला के महाराजा चेटक के पुत्र शोभनराय से हुआ था । जिस समय महाराजा चेटक और कौणिक में परस्पर युद्ध छिड़ा तो कौणिक. नृपति ने वैशाला नगरी का विध्वंस कर दिया और चेटक राजा समाधी मग्या से स्वर्गधाम को सिधाया ! श्रतः शोभनगय अपने श्वसुर महाराजा सुलोचन के यहाँ चला गया । सुलोचन राजा तथा श्रतएव उसने अपना साग साम्राज्य शोभनगय के हस्तगत कर दिया । सुलोचन नृपने इस वृद्ध अवस्था में निवृति मार्ग का अवलम्बन कर कुमारगिरि तीर्थ पर समाधी मग्य प्राप्त किया | वीगत् १८ वें वर्ष में शोभनराय कलिङ्ग की गद्दी पर उपरोक्त काग्या से बैठा । यह चेत ( चैत्र ) वंशीय कुलीन गजा था । यह जैन धर्मावलम्बी था । इसने कुमारी पर्वत पर अनेक मन्दिर बनवाए | इसने अपने राज्य का भी खूब विस्तार किया तथा प्रजा की आवश्यक्ताओं को उचित रुप से पूर्ण कर शान्तिपूर्वक राज्य किया ।
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महाराजा शोभनराय की पांचवी पीढी में वीगत् १४६ वर्ष में चडराय नामका कलिङ्ग का राजा हुआ था । उस समय मगध