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जैन जाति महोदय प्रकरण पांचवा.
रानी घूषि का खुदाया हुआ है, खारवेल को चक्रवर्ती लिखा है एक गुफा के शिलालेख में यह बात खुदी हुई पाई गई है कि वहां पर जैन मुनि शुभचन्द्र और कूलचन्द्र रहते थे । यह लेख विक्रम की दसवीं सदी का है। एक गुफा में महाराजा उद्योतन केसरी के समय का लेख है इस के अलावा भी कलिङ्ग की प्राचीनता और गुफाओं का वर्णन, मुनि जिनविजयजी की प्रकाशित की हुई " प्राचीन जैन लेख संग्रह नामक पुस्तक के प्रथम भाग के विस्तृत उपोद्घात के पठन से मालूम हो सकता है ।
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कलिङ्गाधिपति महामेघवाहन चक्रवर्ती महाराजा खारवेल के शिलालेख ने आज युरोपीय और भारतीय पुरातत्वज्ञों के कार्य में चहल पहल तथा धूम मचा दी है । लगभग एक सदी के कठिन परिश्रम के पश्चात् उन्होंने निश्चय किया है कि कलिङ्गाधिपति चक्रवर्ती महाराजा खारवेल जैन सम्राट था और उसने जैन धर्म का खूब प्रचार भी किया था । यह ध्वनि जब कतिपय सोए हुए जैनियों के ( व्यक्तियों के) कानों में पड़ी तब उन विद्वानोंने भी अपनी नींद त्याग दी । उन्होंने अपने बंद भण्डारों के ताले खोले । पन को ऊथल पुथल करना प्रारम्भ किया तो अहोभाग्य से कुछ पन्ने ऐसे भी मिल गये कि जिन में खारवेल के शिलालेख से सम्बन्ध रखनेवाली बातें मिलती थी ।
विक्रम की दूसरी शताब्दि में विख्यात आचार्य श्री स्कंदल सूरीजी के शिष्य आचार्य श्री हेमवंतसूरीने संक्षेप में एक स्थविरा