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पुरानी खोजें. कई तो टूट फूट कर नष्ट हो गई। पर इस समय भी अनेक छोटी छोटी गुफाएँ विद्यमान हैं। इनमें जैन साधु तथा बौद्ध भिक्षु नि. वास किया करते थे । इस से इस बात का पता लगता है कि प्राचीन समय में कई मुनि पहाड़ों की कन्दराओं में निवास करते थे । तथा वे एकान्त स्थान में निस्तब्धता के साम्राज्य में अपना पात्महित साधन करने में तत्पर रहते थे।
बाबू मनमोहन गङ्गोली बंगाल निवासीने इन गुफाओं की पूरी तरह से खोजना करी तथा इस अनुसंधान का वर्णन एक पुस्तक में लिखा है जो बंगला भाषा में छपकर प्रकाशित हो चुका है । इस पुस्तक में एक स्थान पर लिखा है कि इन गुफाओं का निर्माण ई. स.. के पूर्व की तीसरी और चौथी सदी में हुआ है। कई गुफाओं तो इस से भी पहले की बनी मालूम होती हैं। कई कई गुफाओं दुमञ्जली हैं । इन में से कई तो नष्ट हो गई हैं तथापि भारत की प्राचीन शिल्पविद्या का प्रदर्शन कराने में समर्थ हैं। गुफाओं की दिवारों पर चौबीसों तिथंकरों की मूर्तियाँ खुदी हुई हैं तथा उनके नीचे उनके चिह्न भी खुदे हुए हैं।
हस्तिगुफा में महाराजा खारवेल का शिलालेख खुदा हुआ है। मांचीपुर गुफा में श्री पार्श्वनाथ स्वामी का सम्पूर्ण जीवन चारित्र खुदा हुआ है। गणेशगुफा में भी खोज करने पर पार्श्वनाथ स्वामी का कुछ कुछ जीवन वृतान्त खुदा हुआ मिला है। रानी गुफा की खोज से मालूम हुआ है कि एक शिलालेख में, जो