SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 797
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ( २०४) जैन जाति महोदय प्रकरण पांचवा. ( १५ ).......सुकृति श्रमणे सुविहित शत दिशाओं के शानी-तपस्वी ऋषि संघ के लोगों को........अरिहन्त के निषीरीका पास पहाड़ के ऊपर उम्दा खानों के अन्दर से निकाल के लाए हुये-अनेक योजनोंसे लाए हुए....सिंह प्रस्थवाली रानी सिन्धुलाके लिये निःश्रय........ ( १६ ).......घंटा संयुक्त ( . ) वैदुर्य रत्नवाले चार स्तम्भ स्थापित किये। पचहत्तर लाख के व्ययसे मौर्यकाल में उच्छे दित हुए हुए चौसठ ( चौसठ अध्यायवाले ) अंग सप्तिको का चौथा भाग पुनः तैयार करवाया । यह खेमराज वृद्धराज भिक्षुराज धर्मराज कल्यान को देखते और अनुभव करते ( १७ )..... छ गुण विशेष कुशल सर्व पंथो का श्रादर करनेवाला सर्व ( प्रकारके ) मन्दिरों की मरम्मत कर वानेवाला अस्खलित रथ और सेनावाला चक्र ( राज्य ) के धुरा ( नेता) गुप्त ( रक्षित ) चक्रवाला प्रवृतचक्रवाला राजर्षि वंश विनिःसृत राजा खारवेल . यूरोपीय और भारतीय पुरातत्वज्ञों से केवल खारवेल का ही शिलालेख उपलब्ध नहीं हुआ है वरन दूसरे अनेक लाम हमें उनकी खोजों से हुए हैं। उदयगिरि और खण्डगिरि की हस्ति गुफा के अतिरिक्त अनन्त गुफा, रानीगुफा, सर्पगुफा, व्याघ्रगुफा, शतधरगुफा, शतचक्रगुफा, हाँसीगुफा मोर नव मुनि गुफा का भी साथ साथ पता लगा है। किंवदन्ति से ज्ञात होता है कि इस पर्वत श्रेणी में सब मिलाकर ०५२ गुफाएँ थीं जिन में से
SR No.002448
Book TitleJain Jati mahoday
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyansundar Maharaj
PublisherChandraprabh Jain Shwetambar Mandir
Publication Year1995
Total Pages1026
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy