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खारवेल के शिलालेख का अनुवाद. . ( २०३) दिया, लोगों को धोखाबाजीसे ठगनेवाले ११३ वर्ष के तमर का देहसंधान को तोड़ दिया। बारहवें वर्ष में........री उत्तरापथमें राजाओं को बहुत दुःख दिया ।
(१२)........और मगध वासियों को बड़ा भारी भय उत्पन्न करते हुए हस्तियों को सुगंग (प्रासाद ) तक ले गया और मगधाधिपति बृहस्पति को अपने चरणों में झुकाया । तथा गजानंद रास ले गई कलिंग जिन मूर्ति को........और गृहरत्नों को लेकर प्रतिहारोंद्वारा अंग मगध का धन ले आया ।
( १३ )........अन्दर से लिखा हुमा ( खुदे हुए ) सुन्दर शिखरों को .बनवाया और साथ में सौ कारीगरों को जागीरें दी अद्भुत और आश्चर्य ( हो ऐसी गीतसे ) हाथियों के भरे हुए अहाज नजराना हो । हस्ती रत्न माणिक्य, पाड्यराजके यहाँ से इस समय अनेक मोती मानिक रत्न लूट करके लाए ऐसे वह सक्त ( लायक महाराजा ।
. ( १४ )........सब को वश किये । तेरहवे वर्ष में पवित्र कुमारी पर्वतके ऊपर जहाँ ( जैन धर्म का ) विजय धर्म चक सुप्रवृत्तमान है । प्रक्षीण संसृति ( जन्म मरणों को नष्ट किये ) काय निषीदी ( स्तूप ) ऊपर ( रहनेवाले ) पाप को बतानेवाले ( पाप सापकों ) के लिये व्रत पूरे हो गये पश्चात् मिलनेवाले राज (वि भूतियाँ कायम कर दी । (शासनो बन्ध दिये ) पूजा में रक्त उपासक खारवेलने जीव और शरीर की-श्री की परीक्षा करली ( जीव और शरीर परीक्षा कर ली है)