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खारवेल के शिलालेख का अनुवाद. (२०१) (४) करवाई। पैंतीस लाख प्रकृति ( प्रजा ) का रखन किया । दूसरे वर्ष में सातकणि ( सातकर्मि ) की किचित् भी परवाह न कर के पश्चिम दिशा में चढ़ाई करने को घोड़े, हाथी, रथ और पैदल सहित बड़ी सेना भेजी। कन्हवेनों (कप्णवेणा) नदी पर पहुँची हुई सेना से मुसिकभूषिका नगर को त्रास पहुँ. चाया | और तीसरे वर्ष में गंधर्व वेद के पंडित ऐसे ( उन्होंने ) दंप ( डफ ? ) नृत्य, गीत, वादित्र के संदर्शन ( तमाशे) आदि से उत्सव समाज ( नाटक, करती आदि ) करवा कर नगर को खेलाया; और चौथे वर्ष में विद्याधराधिवासे को केगिस को कलिङ्ग के पूर्ववर्ती राजाओंने बनवाया था और जो पहिले कभी भी पड़ा नहीं था । महत पूर्व का अर्थ नया चढ़ा कर यह भी होता है........... ....जिस के मुकुट व्यर्थ हो गये है। जिन के कवच बस्तर मादि काट कर दो टुकड़े कर दिये गये हैं, जिन के छत्र काट कर उडा दिये गये हैं। . (६) और जिन के शृङ्गार ( राजकीय चिह, सोने चांदी के लोटे मारी ) फेंक दिये गये हैं, जिन के रत्न और स्वापतेय (धन ) छीन लिया गया है ऐसे सब राष्ट्रीय भोजकों को अपने चरणों में मुकाया, अब पांचवे वर्ष में नन्दराज्य के एक सौ और तीसरे वर्ष ( संवत् ) में खुदी हुई नहर को तनसुलिय के रस्ते राजधानी के अन्दर से पाए । अभिषेक से छटवे वर्ष राजसूय यज्ञ के उजवने हुए । महसूल के सब रुपये
(७) माफ किये. वैसे ही अनेक लाखों अनुग्रहों पौर