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जैन जाति महोदय प्रकरण पांचवा. शिलालेख का भाषानुवाद।
( श्रीमान पं. सुखलालजी का — गुजराती भाषानुवाद' से )
(१) अरिहन्तों को नमस्कार, सिद्धों को नमस्कार, ऐर ( ऐल ) महाराजा महामेघवाहन ( मरेन्द्र ) चेदिराजवंशवर्धन, प्रशस्त, शुभ लक्षण युक्त, चतुरन्त व्यापि गुण युक्त कलिङ्गाषिपति श्री खारवेलने
(२) पन्द्रह वर्ष पर्यन्त श्री कडार ( गौर वर्ण युक्त ) शारीरिक स्वरूपवालेने बाल्यावस्था की क्रीडाएं की। इस के पीछे लेख्य ( सरकारी फरियादनामा आदि ) रूप ( टंकशाल ) गणित (राज्य की माय व्यय तथा हिसाब) व्यवहार (नियमोपनियम) मौर विधि (धर्मशास्त्र भादि) विषयों में विशारद हो सर्व विद्याबदात ( सर्व विद्याओं में प्रबुद्ध ) ऐसे ( उन्होंने ) नौ वर्ष पर्यन्त युवराज पद पर रह कर शासन का कार्य किया। उस समय पूर्ण चौबीस वर्ष की आयु में जो कि बालवयसे वर्धमान और जो भमिविजय में वेन ( राज ) है ऐसे वह तीसरे
(३) पुरुष युग में ( तीसरी पुरत में ) कलिंग के राम्यवंश में राज्याभिषेक पाए । अभिषेक होने के पात् प्रथम वर्ष में प्रबल वायु उपद्रव से टूटे हुए दरवाजे वाले किले का जिर्णोद्धार कराया । राजधानी कलिङ्ग नगर में ऋषि खिबीर के वालाब और किनारे बंधवाए । सब बगीचों की मरम्मत