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जैन जाति महोदय प्रकरण पांचवा.
लेख है, जिस धर्म के गौरव के प्रदर्शन करनेवाला यह शिलालेख है उस जैन धर्मवालोंने आज तक कुछ भी नहीं किया । जिस महत्व पूर्ण विषय की ओर ध्यान देने की अत्यंत श्रावश्यक्ता थी वह विषय उपेक्षा की दृष्टि से देखा गया । क्या वास्तव में जैनियोंने इस विषय की ओर आंख उठाकर देखा तक नहीं ? क्या कृतज्ञता प्रकट करना वे भूल ही गये ? जहाँ चन्द्रगुप्त और सम्प्रति राजा के लिये जैन ग्रंथकारोंने पोथे के पोथे लिख डाले वहाँ क्या श्वेताम्बर और क्या दिगम्बर किसी भी श्राचार्यने इस नरेश के चारित्र की ओर प्रायः कलम तक नहीं उठाई कि जिसके आधार से आज हम जनता के सामने खाखेल का कुछ वन रख सकें। क्या यह बात कम लज्जास्पद है ?
उधर आज जैनेनर देशी और विदेशी पुगतत्वज्ञ तथा इतिहास प्रेमियोंने साहित्य संसार में प्रस्तुत लेख के सम्बन्ध में धूम मचादी हैं । उन्होनें इसके लिये हजारों रुपैयों को खर्चा | अनेक तरह से परिश्रम कर पता लगाया | पर जैनी इतने बेपरवाह निकले कि उन्हें इस बात का भान तक नहीं । श्राज अधिकाँश जैनी ऐसे हैं जिन्होंने कान से खारवेल का नाम तक नहीं सुना है । कई अज्ञानी तो यहाँ तक कह गुजरते हैं कि गई गुजरी बातों के लिये इतनी सरपथ्वी तथा मराजमारी करना व्यर्थ है । बलिहारी इनकी बुद्धि की । वे कहते हैं। इस लेख से जैनियों को मुक्ति थोड़े ही मिल जायगी । इसे सुने तो क्या और पढ़े तो क्या ? और न पढे तो क्या होना हवाना !
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चीन समय में हमें अपने धर्म का कितना गौरव रह गया है इस बात की जांच ऐसी लचर दलीलों से अपने श्राप हो जाती है । जिस