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________________ कलिला देश का इतिहास. (१८९) से प्रयत्न कर के उन्होंने उसका मतलब जानना चाहा पर वे अन्त में असफल हुए । इतने पर भी उन्होंने प्रयत्न जारी रक्खा । इस शिलालेख के कई फोटू लिये गये । कागज लगा लगा कर कई चित्र लिये गये । यह शिलालेख चित्र के रूप में समाचार पत्रों में भी प्रकाशित हुआ । इस शिलालेख पर कई पुस्तकें निकलीं। इस प्रयत्न में विशेष भाग निम्न लिखिन यूरोपियनोंने लिया डॉ. टामस, मेजर कीट्ट, अनग्ल कनिंग हाम, प्रसिद्ध इतिहासकार विन्सटेंट, डॉ. स्मिथ, बिहार गवर्नर सर एडवर्ड आदि आदि। जब इसका पूरा पता नहीं चला तो इस खोज के आन्दोलन को भारत सरकारने अपने हाथ में ले लिया। यह शिलालेख यहाँ से इङ्गलेण्ड भेजा गया। वहाँ के वैज्ञानिकोंने उसकी विचित्र तरह से फोटू ली । भारतीय पुगतत्वज्ञ भी नींद नहीं ले रहे थे । इन्होंने भी कम प्रयत्न नहीं किया। महाशय जायसवाल, मिस्टर राखलदास बनर्जी, श्रीयुत भगवानदास इन्दी और अन्त में सफलता प्राप्त करनेवाले श्रीमान केशवलाल हर्षदगय ध्रुव थे । श्री. केशवलालने अविरल प्रयत्न से इस लेख का पता बताया ! नबसे सन १६१७ अर्थात् सौवर्ष के प्रयत्न से अन्त में यह निश्चित हुआ कि यह शिलालेख कलिंगाधिपति महामेघबहान चक्रवर्ती जैन सम्राट महागजा खारवेल का है। सचमुच बडे शोक की बात है कि जिस धर्म से यह शिलालेख सम्बन्ध रखता है, जिस धर्म की महत्ता को बतानेवाला यह
SR No.002448
Book TitleJain Jati mahoday
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyansundar Maharaj
PublisherChandraprabh Jain Shwetambar Mandir
Publication Year1995
Total Pages1026
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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