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________________ ( १८८) जैन जाति महोदय प्रकरण पांचवा. सामग्री प्राप्त हुई है उन में महराजा खारबलका खुदा हुमा शिलालेख बहुत ही महत्व की वस्तु है। खारवेल का यह महत्वपूर्ण शिलालेख खण्डगिरि उदयगिरि पहाड़ी की हस्ती गुफासे मिला है । इस लेख को सब से प्रथम पादरी स्टर्लिङ्ग ने ई. सन १८२० में देखा था । पर पादरी साहब उस लेख को साफ तौरसे नहीं पढ़ सके । इस के कई कारण थे । प्रथम तो वह लेख २००० वर्ष से भी अधिक पुराना होने के कारण जर्जर अवस्था में था । यह शिलालेख इतने वर्षोंतक सुरक्षित न रहने के कारण धिस भी गया था। कई अक्षर मिटने लग गये थे और कई अक्षर तो बिलकुल नष्ट भी हो चुके थे । इस पर भी लेख पालीभाषा से मिलता हुआ शास्त्रों की शैली से लिखा हुआ था। इस कारण पादरी साहब लेखका सार नहीं समझ सके । तथापि पादरी साहब भारतियों की तरह हताश नहीं हुए। वे इस लेखके पीछे चित्त लगाकर पड़ गये । उन्होंने इस शिलालेख के सम्बन्ध में अंगरेजी पत्रों में खासी चर्चा प्रारम्भ करदी । सारे पुरातत्वियों का ध्यान इस शिलालेख की ओर सहज ही में आकर्षित हो गया। इस शिलालेख के विषय में कई तरह का पत्रव्यवहार पुरातत्वज्ञों के आपस में चला । अन्त में इस लेख को देखने की इच्छा से सबने मिलकर एक तिथि निश्चित की । उस तिथि पर इस शिलालेख को पढ़ने के लिये सैंकड़ों यूरोपियन एकत्रित हुए। कई तरह
SR No.002448
Book TitleJain Jati mahoday
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyansundar Maharaj
PublisherChandraprabh Jain Shwetambar Mandir
Publication Year1995
Total Pages1026
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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