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कलिङ्क देशका उपन्यास.
( १८७ ) रोमाँच खड़े हो जाते हैं तथा हृदय थर थर काँपने लगता है । जिस मात्रा में जैनियों में दया का संचार था विधर्मी उसी मात्रा में निर्दयता का बर्ताव कर जैनियों को इस दया के लिये चिढ़ाते थे । पर जैनी इस भयावनी अवस्था में भी अपने न्यायपथ से तनिक भी विचलित नहीं हुए । यही कारण है कि आजतक जैनी अपने पैरों पर खड़े हुए हैं और न्याय पथपर पूर्ण रूपसे आरूढ़ हैं। धर्म का प्रेम जैनियों की रगरग में रमा हुआ है! जैनों के स्याद्वाद सिद्धान्तों का आज भी सारा संसार लोहा मानता है । स्याद्वाद के प्रचंड अस्त्र के सामने मिध्यात्वियों का कुतर्क टिक नहीं सकता । स्याद्वाद की नीतिद्वारा आज जैनी सब विधमि याँका मुँह बंध कर सकने में समर्थ हैं । कलिङ्ग देशमें जैनियों का नाम निशानतक जो आज नहीं मिलता है इसका वास्तविक कारण यही है कि विधमियोंने जैनियों को दुःख दे दे कर वहाँसे तिरोहित किया । आधुनिक विद्वदुमंडली भी यही बात कहती है ।
आज इस वैज्ञानिक युगमें प्रत्यक्ष बातों का ही प्रभाव अधिक पड़ता है । पुरातत्व की खोज और अनुसंधान से ऐतिहासिक सामग्री इतनी उपलब्ध हुई है कि जो हमारे संदेह को मिटाने के लिये पर्याप्त है । जिन प्रतापशाली महापुरुषों के नाम निशान भी हमें ज्ञात नहीं थे, उन्हीं का जीवन वृतान्त आज शिलालेखों, ताम्रपत्रों और सिक्कों में पाया जाता है । उस समय की राजनैतिक दशा, सामाजिक व्यवस्था और धार्मिक प्रवृति का प्रमाणिक उल्लेख यत्र तत्र खोजों से मिला है। इन खोजोंद्वारा जितनी