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________________ ( १८६) जैन जाति महोदय प्रकरण पांचवा. प्रकार की मुसीबत से सामना करना पड़ा क्योंकि विधर्मी नरेशों से जैनियों की उन्नति देखी नहीं जाती थी। वे तो जैनियों को दुःख पहुँचाना अपना धर्म समझते थे। कई जैन साधु शूली पर भी लटकादिये गये थे । वे जीते जी कोल्हू में पेरे गये । उन्हें जमीन में आघा गाड कर काग़ और कुत्तों से नुचवाया गया इसके कई प्रमाण भी उपस्थित है । " हालस्य महात्म्य' नामक ग्रंथ में, जो तामिली भाषा में है, उसके ६८ बैं प्रकरण में इन अत्याचारों का रोमांचकारी विस्तृत वर्णन भौजूद है किन्तु जैनियों ने अपने राजत्व में किसी विधी को नहीं सताया था यही जैनियों की विशेषता है । यह कम गौरव की बात नहीं है कि जैनी अपने शत्रु से बदला लेने का विचारतक नहीं करते थे । यदि जैनियों की नीति कुटिल होती तो क्या वे चन्द्रगुप्त मौर्य या सम्प्रति नरेश के राज्य में विधर्मियों को सताने से चूकते, कदापि नहीं। पर नहीं जैनी, किसी को सताना तो दूर रहा, दूसरे जीव के प्रति कमी प्रसद् विचार तक नहीं करते। जैन शास्त्रकारों का यह खास मन्तव्य है कि अपने प्रकाश द्वारा दूसरों को अपनी ओर पाकर्षित करना तथा सदुपदेश द्वारा भूले भटकों तथा घटकों को राह बताना चाहिये । सबके प्रति मैत्रिभाव रखना यह जैनियों का साधारण भाचार है । जो थोड़ा भी जैनधर्म से परिचित होगा उपरोक्त बात का अवश्यमेव समर्थन करेगा। परन्तु विधम्मियों ने अपनी सत्ता के मद में जैनियों पर ऐसे ऐसे कष्टप्रद अत्याचार किये कि जिनका वर्णन याद आते ही
SR No.002448
Book TitleJain Jati mahoday
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyansundar Maharaj
PublisherChandraprabh Jain Shwetambar Mandir
Publication Year1995
Total Pages1026
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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