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________________ कलिङ्ग देश का इतिहास. (१९१ ) धर्म का इतिहास नहीं उस धर्म में जान नहीं। क्या यह मर्म कभी भूला जा सकता है ? कदापि नहीं । सज्जनों ! सत्य जानिये । महागज खारवेल का लेख जो अति प्राचीन है तथा प्रत्यक्ष प्रमाण भून है जैन धर्म के सिद्धान्तों को पुष्ट करता है । यह जैन धर्म पर अपूर्व प्रभाव डालता है। यह लेख भारत के इतिहास के लिये भी प्रचुर प्रमाण देता है। कई बार लोग यह आक्षेप किया करते हैं कि जिस प्रकार बौद्ध और वेदान्त मत गजाओं से सहायता प्राप्त करता था तथा अपनाया जाता था उसी प्रकार जैन धर्म किसी गजा की सहायता नहीं पाता था न यह अपनाया जाता था या जैन धर्म सारे गष्ट्र का धर्म नहीं था, उनको इस शिलालेख से पूग उत्तर प्रत्यक्षरूप से मिल जाता है और उन के बोलने का अवसर नहीं प्राप्त हो सकता । भगवान महावीर के अहिंसा धर्म के प्रचारकों में शिलालेख सब से प्रथम खारवेल का ही नाम उपस्थित करते हैं। महाराजा खारवेल कट्टर जैनी था । उसने जैन धर्म का प्रचुरता से प्रचार किया। इस शिलालेख से ज्ञात होता है कि आप चैत्रबंशी थे। आपके पूर्वजों को महामेघवहान की उपाधि मिली हुई थी। आपके पिता का नाम बुद्धराज तथा पितामह का नाम खेमगज था । महाराजा खारवेल का जन्म १६७ ई. पूर्व सनमें हुमा । पंद्रह वर्ष तक आपने • बालवय आनंदपूर्वक बिताते हुए प्रावश्यक विद्याध्ययन भी कर लिया तथा नौ वर्ष तक युवरान रह कर राज का प्रबंध प्रापने किया था ।
SR No.002448
Book TitleJain Jati mahoday
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyansundar Maharaj
PublisherChandraprabh Jain Shwetambar Mandir
Publication Year1995
Total Pages1026
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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