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________________ ( १८४ ) जैन जाति महोदय प्रकरण पांचवा. सत् पश्चात् आप की शिष्य समुदाय का इस प्रान्त में 'विशेष' विचरण हुआ था | महावीर प्रभुने भी इस प्रान्त को पधार कर पवित्र किया था । इस प्रान्त में कुमारगिरि ( उदयगिरि ) तथा कुमारी ( खण्ड़गिरि) नामक दो पहाड़ियों है जिनपर कई जैनमंदिर तथा श्रमण समाज के लिये कन्दाराऐं हैं इस कारण से यह देश जैनियों का परम पवित्र तीर्थ रहा है । कलिंग, अंग, बंग और मगध में ये दोनों पहाड़ियों शत्रुजय अवतार नाम से भी प्रसिद्ध थीं । अतएब इस तीर्थपर दूर दूर से कई संघ यात्रा करने के हित श्राया करते थे । ब्राह्मणोंने अपने ग्रंथों में कलिङ्ग वासियों को 'वेदधर्म विनाशक' बताया है। इस मालूम होता है कि कलिंग निवासी सब एक ही धर्म के उपासक थे । दूसरे शब्दों में यह भी कहा जा सकता है कि वे सब के सब जैनी थे । ब्राह्मण लोग कहीं कहीं अपने ग्रंथों में बौद्धों को भी वेदधर्म विनाशक' की उपाधि से उल्लेख करते थे पर कलिंग में पहले बौद्धों का नाम निशानतक नहीं था । महाराजा अशोकने कलिङ्ग देशपर ई. सं. २६२ पूर्व में आक्रमण किया था उसी के बाद कलिङ्ग देश में बोद्धों का प्रवेश हुआ था । इस के प्रथम ही ब्राह्मणोंने अपने आदित्य पुराण में यहाँ तक लिख दिया कि कलिङ्ग देश अनार्य लोगों के रहने की भूमि है। जो ब्राह्मण कलिङ्ग में प्रवेश करेगा वह पतित समझा जावेगा ! यथा " गत्वैतान् काम तो देशात् कलिङ्गाथ पवेत् द्विजः । " 6
SR No.002448
Book TitleJain Jati mahoday
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyansundar Maharaj
PublisherChandraprabh Jain Shwetambar Mandir
Publication Year1995
Total Pages1026
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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