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________________ कलिङ्ग देशका इतिहास । गधदेश का निकटवर्ती प्रदेश कलिङ्ग भी जैनों का एक बड़ा केन्द्र था | इस देश का इतिहास बहुत प्राचीन है। भगवान आदि तिथंकर श्री ऋषभ देव स्वामीने अपने १०० पुत्रों को जब अपना राज्य बाँटा था तो कलिङ्ग नामक एक पुत्र के हिस्से में यह प्रदेश भाया था। उसके नाम के पीछे यह प्रदेश भी कलिङ्ग कहलाने लगा । चिरकाल तक इस प्रदेश का यही नाम चलता रहा । वेद, स्मृति, महाभारत, रामायण और पुराणों में भी इस देश का जहाँ तहाँ कलिङ्ग नाम से ही उल्लेख हुआ है। भगवान महावीर स्वामी के शासन तक इस का नाम कलिंग कहा जाता था । श्री पनवरणा सूत्र में जहाँ साढ़े पचीस आर्य क्षेत्रों का उल्लेख है उन में से एक का नाम कलिङ्ग लिखा हुआ है । यथा " राजगिह मगह चंपा अंगा, वहतामलिति बंगाय । कंचणपुरं कलिंगा बखारसी चैव कासीय । " उस समय कलिंग की राजधानी कांचनपुर थी । इस देश पर कई राजाओं का अधिकार रहा है. । तथा कई महर्षियोंने इस पवित्र भूमि पर विहार किया है तेबीसवें तिर्थकर श्रीपार्श्वनाथ प्रभु भी अपने चरणकमलों से इस प्रदेश को पावन किया था ।
SR No.002448
Book TitleJain Jati mahoday
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyansundar Maharaj
PublisherChandraprabh Jain Shwetambar Mandir
Publication Year1995
Total Pages1026
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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